अजंता की गुफाएं संक्षिप्त जानकारी
स्थान | औरंगाबाद, महाराष्ट्र (भारत) |
निर्माण काल | छठी से दसवी शताब्दी |
प्रकार | गुफा |
अजंता की गुफाएं का संक्षिप्त विवरण
अजंता की गुफाएं लगभग 29 चट्टानों को काटकर बनाई गई बौद्ध स्मारको की गुफाएँ व मठ हैं,जो भारतीय राज्य महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में स्थित हैं। यहाँ बनी सभी गुफाओं में से विशेष रूप से 16वीं गुफा में स्थित भगवान् शिव को समर्पित एक कैलाश मंदिर है जो एक रथ आकार का है, जोकि दुनिया की सबसे बड़ी एकल मोनोलिथिक खुदाई वाली चट्टान है। कैलाश मंदिर में हिंदू महाकाव्यों का सारांश देने वाले देवताओं, देवियों और पौराणिक कथाओं को भी शामिल किया गया है।
यहाँ बने मठों का उपयोग बौद्ध भिक्षुओं द्वारा प्रार्थना करने और भगवान बुद्ध की शिक्षाओं का अध्ययन करने के लिए किया जाता था। आप यहाँ पर बौद्ध धर्म से जुड़े चित्रण एवम् शिल्पकारी के बेहतरीन नमूने देख सकते हैं।
अजंता की गुफाएं का इतिहास
ये गुफाएं व मठ लगभग दूसरी शताब्दी ई.पू. से लेकर 480 या 650 शताब्दी ई. के बीच में बने थे। इन गुफाओं में बनी अद्भुत पेटिंग और चट्टानों से बनी अविश्वनीय मूर्तियाँ प्राचीन भारतीय कला का बेजोड़ उदाहरण है।
इन प्रसिद्ध गुफाओं के चित्रों की चमक एक हज़ार साल से भी अधिक समय बीतने के बाद भी ऐसा ही प्रतीत होता है जैसे प्राचीन काल में था, इनका रंग न तो हल्का हुआ और न ही खराब हुआ। आधुनिक समय के विद्वानों के लिए यह एक आश्चर्य का विषय है। प्राचीन भारत की ये प्रसिद्ध गुफाएँ हमेशा से ही विश्व भर से आने वाले सैलानियों के आकर्षण का मुख्य केंद्र रही हैं।
अजंता की गुफाएं के रोचक तथ्य
- अजंता की गुफाएँ महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले से 101 कि.मी. दूर उत्तर में स्थित हैं।
- सह्याद्रि की पहाडि़यों पर स्थित इन 29 गुफाओं (भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग द्वारा आधिकारिक गणनानुसार) में लगभग 5 प्रार्थना भवन और 25 बौद्ध मठ हैं।
- इन गुफाओं की नदी से ऊँचाई 35 से 110 फीट तक है।
- ये गुफाएँ घोड़े की नाल के आकार में निर्मित है, जिनका अत्यन्त ही प्राचीन व ऐतिहासिक महत्व है।
- इन गुफाओं को दो भागो में विभाजित किया जा सकता है। गुफा के एक हिस्से में बौद्ध धर्म के हीनयान और दूसरे हिस्से में महायान संप्रदाय की झलक देखने को मिलती है।
- हीनयान वाले भाग में 2 प्रार्थना हॉल और 4 विहार (बौद्ध भिक्षुओं के रहने के स्थान) है तथा महायान वाले भाग में 3 चैत्य हॉल और 11 विहार है।
- इन गुफाओं में 'फ़्रेस्को' तथा 'टेम्पेरा' दोनों ही प्रकार से चित्र बनाये गए हैं। चित्र बनाने से पहले दीवार को अच्छी तरह से रगड़कर साफ़ किया जाता था तथा फिर उसके ऊपर लेप चढ़ाया जाता था।
- आर्मी ऑफिसर जॉन स्मिथ व उनके दल द्वारा सन् 1819 में इन गुफाओं की खोज की गई थी।
- जब साल 1819 में वे औरंगाबाद जिले में शिकार करने आए थे, तभी उन्हें ये 29 गुफाओं की एक श्रृंखला नजर आई और इस तरह ये गुफाएँ विश्व प्रसिद्ध हो गई।
- इन गुफाओं की दीवारों पर सुन्दर अप्सराओं व राजकुमारियों के विभिन्न मुद्राओं वाले सुंदर कलाकृति बनाई गई है, जो यहाँ की उत्कृष्ट चित्रकारी व मूर्तिकला का बहुत ही बेहतरीन उदाहरण है।
- 19वीं शताब्दी की गुफाएँ, जिसमें बौद्ध धर्म के अनुयायियों की मूर्तियाँ व चित्र है। हथौड़े और चीनी की मदद से बनी कल्पना से परे ये मूर्तियाँ सुंदरता का नायाब उदहारण है।
- सन् 1983 में युनेस्को द्वारा इन गुफाओं को विश्व विरासत स्थल के रूप में घोषित किया जा चुका है।
- आप सोमवार को छोड़कर हफ्ते के 6 दिनों में से कभी भी इन गुफाओं में घुमने के लिए जा सकते है, क्योकि यहाँ पर सोमवार को अवकाश रहता है।
- महाराष्ट्र के मुख्य शहरों मुंबई, पुणे, अहमदाबाद, नासिक, इंदौर, धूले, जलगाँव, शिर्डी आदि से औरंगाबाद के लिए बस सुविधा उपलब्ध है।