भानगढ़ किला संक्षिप्त जानकारी
स्थान | अलवर जिला, राजस्थान (भारत) |
निर्माण | 1573 ई. |
निर्माता | राजा भगवंतदास |
प्रकार | किला |
भानगढ़ किला का संक्षिप्त विवरण
भारत विश्व के सबसे बड़े धार्मिक देशो में से एक है, जहाँ विभिन्न प्रकार के धर्मो के लोगो के साथ-साथ विभिन्न विचारधाराओं को मानने वाले लोग भी निवास करते है। भारतीय राज्य राजस्थान अपने भीतर की विविधताओ के लिए पूरे विश्वभर में विख्यात है, चांहे वह विविधता भौतिक स्तिथि की हो या फिर सांस्कृतिक विकास की। राजस्थान के अलवर जिले में स्थित भानगढ़ किला अपने रोचक इतिहास, अद्भुत कलाकृति और भूतियाँ लोककितियो के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है।
भानगढ़ किला का इतिहास
इस प्रसिद्ध किले का निर्माण वर्ष 1573 ई. में आमेर के राजा भगवंतदास ने करवाया था। यह किला अपने निर्माण के बाद लगभग 3 शताब्दियों तक काफी सक्रिय रहा परंतु उसके बाद यह थोडा निष्क्रिय होने लगा था। प्रसिद्ध मुगल सम्राट अकबर के नवरत्नों में शामिल और भगवंत दास के छोटे बेटे व अम्बर (आमेर) के महान मुगल सेनापति, मानसिंह के छोटे भाई राजा “माधो सिंह” ने इसे वर्ष 1613 ई. में अपना निवास स्थान बना लिया था।
माधौ सिंह के बाद उसके पुत्र छत्र सिंह ने यहाँ के शासन व्यवस्था को अपने नियंत्रण में ले लिया और शासन करने लगा था। विक्रम संवत के अनुसार वर्ष 1722 ई. में इसी वंश के हरिसिंह ने यहाँ के शासन की गद्दी संभाली जिसके साथ ही भानगढ की चमक धीरे-धीरे कम होने लगी। छत्र सिंह के बेटे अजब सिंह ने भानगढ़ के समीप स्थित ही अजबगढ़ का निर्माण करवाया था।
औरंगजेब के शासन के दौरान उसने हिन्दुओं पर बहुत अत्याचार किये थे, जिस कारण दबाव में आकर हरिसिंह के दोनो बेटो ने इस्लाम को अपना लिया था, जिन्हें बाद में मोहम्मद कुलीज एवं मोहम्मद दहलीज के नाम से जाना गया। इन दोनों भाईयों के मुसलमान बनने एवं औरंगजेब की शासन पर पकड़ ढीली होने पर जयपुर के महाराजा सवाई जय सिंह ने इन्हे मारकर भानगढ़ पर कब्जा कर लिया तथा माधो सिंह के वंशजों को भानगढ़ के किले की सत्ता सौंप दी थी।
भानगढ़ किला के रोचक तथ्य
- इस भव्य किले का सर्वप्रथम निर्माण वर्ष 1573 ई. में आमेर के प्रसिद्ध शासक राजा भगवंतदास जी द्वारा करवाया गया था।
- यह विश्व प्रसिद्ध किला भारतीय राज्य राजस्थान के अलवर जिले में अरावली पर्वत श्रंखला के ऊपर बनाया गया है, जो इसे एक विशेष प्रकार की सुरक्षा और मनमोहक दृश्य प्रदान करती है।
- यह किला भारतीय राजधानी दिल्ली से मात्र 235 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, जिस कारण इस किले को देखने के लिए पर्यटकों को ज्यादा परेशानियों का सामना नही करना पड़ता है।
- ऐसा माना जाता है कि इस किले के प्रसिद्ध शासक माधोसिंह की मौत के बाद उनके बेटे छतरसिंह ने भानगढ़ किले के राजा का पद संभाला था, जिसकी मृत्यु वर्ष 1630 ई. में एक युद्ध के दौरान हो गई थी।
- वर्ष 1720 ई. में भानगढ़ राज्य और उसके किले को आमेर के राजा जयसिंह द्वारा जबरन अपने राज्य आमेर में मिला लिया गया था।
- भानगढ़ जब आमेर राज्य से मिला तो यह धीरे-धीरे उजड़ने लगा और जल्द ही यहाँ पर पानी की कमी हो गई, जिस कारण वर्ष 1783 ई. में यहाँ आकाल आ गया जिसके बाद यह इलाका पूरी तरह से उजड़ गया था।
- इस भव्य और ऐतिहासिक किले के बारे में स्थानीय लोगो द्वारा कुछ भूतिया बाते की जाती रहती है, जिसे ध्यान में रखते हुये भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा वहाँ पर यात्रा के नियम तैयार किये गये है, जिस कारण यहाँ सूर्यास्त के बाद और सूर्यउदय से पहले भ्रमण करने की अनुमति नही है।
- इस किले को स्थानीय लोगो द्वारा भूतिया किला कहा जाता है, जिस कारण यह किले प्रत्येक वर्ष लाखो की संख्या में पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है।
- इस किले की प्रमुख संरचनाओ में इसके प्रसिद्ध मंदिर सम्मिलित है, जिनमे “भगवान सोमेश्वर मंदिर”, “गोपीनाथ मंदिर”, “मंगला देवी मंदिर” और “केशव राय मंदिर” प्रमुख है।
- इस किले तक वायु सेवा द्वारा आसानी से पंहुचा जा सकता है, इसका सबसे नजदीकी हवाईपतन जयपुर में स्थित सतेंदर एयरपोर्ट् (Santander airport) है, जोकि इस किले से मात्र 56 कि.मी. की दूरी पर स्थित है, यहाँ से आप सड़क परिवहन का उपयोग कर किले तक पंहुच सकते है।
- इस किले तक रेलवे की सुविधा द्वारा भी पंहुचा जा सकता है, क्यूंकि इसका सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन “दौसा रेलवे स्टेशन” इससे मात्र 22 कि.मी. की दूरी पर स्थित है।