बृहदीश्वर मंदिरथंजावुरी संक्षिप्त जानकारी
स्थान | तंजौर या तंजावुर, तमिलनाडु (भारत) |
खोज | 1003-1010 |
वास्तुकार | राजराज प्रथम |
वास्तुकला शैली | द्रविड़ वास्तुकला |
बृहदीश्वर मंदिरथंजावुरी का संक्षिप्त विवरण
बृहदेश्वर या बृहदीश्वर मंदिर दक्षिण भारतीय राज्य तमिलनाडु के तंजौर में स्थित एक प्रसिद्ध हिंदू मंदिर है। तमिल भाषा में इसे बृहदीश्वर के नाम से जाना जाता है। ये मंदिर भगवान शिवशंकर को समर्पित है। यह मंदिर अपनी सुन्दरता, वास्तुशिल्प और केन्द्रीय गुम्बद से लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचता है। इसे देखने हर साल लाखों की संख्या में दुनियाभर से पर्यटक आते है।
बृहदीश्वर मंदिरथंजावुरी का इतिहास
इस भव्य मंदिर के प्रवर्तक राजाराज -1 चोल थे। राजाराज चोल 1 दक्षिण भारत के चोल साम्राज्य के महान सम्राट थे, जिन्होंने यहाँ 985 से 1014 तक राज किया। उनके शासन में चोलों ने दक्षिण में श्रीलंका तथा उत्तर में कलिंग तक साम्राज्य फैलाया। इस मंदिर का निर्माण 1003-1010 ई. के बीच किया गया था। उनके नाम के कारण ही इसे राजराजेश्वर मंदिर नाम भी दिया गया है। यह मंदिर उनके शासनकाल की वास्तुकला की एक श्रेष्ठ उपलब्धि है।
बृहदीश्वर मंदिरथंजावुरी के रोचक तथ्य
- इस मंदिर के निर्माण में लगभग 1,30,000 टन ग्रेनाइट का उपयोग किया गया था, जबकि मंदिर के 100 कि.मी. की दूरी तक ग्रेनाइट की कोई खदान मौजूद नहीं है। संसार में यह अपनी तरह का पहला और एकमात्र मंदिर है जिसे ग्रेनाइट से बनाया गया था।
- इसकी ऊंचाई लगभग 66 मीटर (216. 535 फुट) है और जिसे विश्व के सबसे ऊँचे मंदिरों में गिना जाता है।
- मंदिर में अन्दर जाने पर आपको गोपुरम् के भीतर एक चौकोर मंडप बना हुआ दिखाई देगा।
- वही चबूतरे पर भगवान् शिव की सवारी नन्दी जी (सांड) की मूर्ति भी हैं। इस प्रतिमा की लम्बाई 6 मीटर, चौड़ाई 2.6 मीटर तथा ऊंचाई 3.7 मीटर है।
- देश में एक ही पत्थर से निर्मित नन्दी जी की यह दूसरी सबसे बड़ी प्रतिमा है।
- मंदिर के सबसे ऊपर एक कुंभम् (कलश) बना है, जिसे केवल एक ही पत्थर से बनाया गया है और इसका वज़न 80 टन का है।
- गर्भ गृह के अंदर 8.7 मीटर ऊंचाई का विशाल लिंग भी है।
- अंदर के मार्ग में दीवारों पर दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती और भिक्षाटन, वीरभद्र कालांतक, नटेश, अर्धनारीश्वर और अलिंगाना रूप में शिव की प्रतिमा बनी हुई है।
- अंदर की ओर दीवार के निचले हिस्से में भित्ति चित्र चोल साम्राज्य के समय के उत्कृष्ट उदाहरण है।
- साल 1987 में यूनेस्को द्वारा इस मंदिर को विश्व विरासत स्थल भी घोषित किया जा चुका है।
- यहाँ पर कार्तिक के महीने में कृत्तिका नाम से एक त्यौहार भी मनाया जाता है, इसके अलावा वैशाख (मई) के महीने में नौ दिन का एक उत्सव ओर मनाया जाता है जिसमें राजा राजेश्वर के जीवन पर आधारित नाटक का मंचन किया जाता था।
- भारतीय रिजर्व बैंक ने 01 अप्रैल 1954 को 1000 रुपये का नोट जारी किया था, जिस पर इस बृहदेश्वर मंदिर की भव्य तस्वीर को अंकित किया गया था।
- भारत सरकार ने वर्ष 2010 में इस मंदिर के निर्माण के एक हजार वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में आयोजित मिलेनियम उत्सव के दौरान एक हजार रुपये का स्मारक सिक्का भी जारी किया था। इस सिक्के का वजन 35 ग्राम है जिसे 80 प्रतिशत चाँदी और 20 प्रतिशत तांबे से मिलाकर बनाया गया था।
- इस सिक्के के एक तरफ सिंह स्तंभ के चित्र के साथ हिंदी में सत्यमेव जयते, भारत तथा धनराशि हिंदी तथा अंग्रेजी दोनो भाषा में लिखी गई है। वही सिक्के के
- दूसरी ओर राजाराज चोल- I की तस्वीर बनी हुई है, जिसमें वे हाथ जोड़कर मंदिर में खड़े हुए हैं।
- इस मंदिर की एक और विशेषता यह भी है कि गोपुरम (पिरामिड की आकृति जो दक्षिण भारत के मंदिर के मुख्य द्वार पर स्थित होता है) की छाया जमीन पर नहीं पड़ती।