गुलबर्गा किला संक्षिप्त जानकारी
स्थान | गुलबर्गा जिला, कर्नाटक (भारत) |
निर्माणकाल | 14वीं शताब्दी ई. |
निर्माता | अल-उद-दीन बहमानी और आदिल शाह |
प्रकार | किला |
गुलबर्गा किला का संक्षिप्त विवरण
भारतीय उपमहाद्वीप के दक्षिण में स्थित कर्नाटक राज्य भारत के सबसे प्रमुख राज्यों में से एक है, इस राज्य के गुलबर्गा जिले में स्थित गुलबर्ग किला भारत के सबसे प्राचीन और नक्काशीदार किलो में से एक है, जो विश्व में अपनी ऐतिहासिक संस्कृति और कलाकृति के लिए जाना जाता है।
गुलबर्गा किला का इतिहास
12वीं शताब्दी के अंत तक गुलबर्ग क्षेत्र पर होयसल राजवंश का शासन चल रहा था। इनके शासनकाल के दौरान ही काकतीय वंश भी शक्तिशाली हो रहा था, जिसने बाद में गुलबर्ग जिले और रायचूर जिले पर कब्ज़ा कर लिया था। वर्ष 1321 में काकतीय वंश को हराकर दिल्ली सल्तनत ने इस क्षेत्र पर अपना शासन प्रारंभ किया।
दिल्ली से नियुक्त मुस्लिम अधिकारियों के बगावत करने पर वर्ष 1347 में बहमनी सल्तनत की स्थापना हुई थी, इसके प्रथम राजा हसन गंगू ने गुलबर्ग को अपनी राजधानी के रूप चुना, जिन्होंने इस किले का निर्माण भी करवाया था। बाद में राजधानी को जब बदलकर बीदर में ले जाया गया, तो इससे दक्खन के सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक जीवन में बदलाव आये थे जिस कारण वे हिन्दू परम्पराओं के साथ घुलने-मिलने लगे थे।
गुलबर्ग किले को विजयनगर के सम्राट द्वारा नष्ट कर दिया गया था। बाद में जब यूसुफ़ आदिल शाह यहाँ के सम्राट बने तो उन्होंने इसका पुनर्निर्माण कराया था। 15वीं शताब्दी के अंत और 16वीं शताब्दी की शुरुआत तक दक्खन पर मुख्यतः बहमनी साम्राज्य का राज था, जिसके बाद राज्य को 5 भागों में विभाजित कर दिया गया था। इसके बाद इस पर मुग़ल सम्राट औरंगज़ेब ने कब्ज़ा किया और इसकी देखरेख के लिए निज़ाम-उल-मुल्क को यहाँ नियुक्त कर दिया था।
जब 18वीं शताब्दी की शुरुआत में मुग़ल साम्राज्य का पतन हो गया, तो निज़ाम-उल-मुल्क आसफजाह ने 1724 में हैदराबाद राज्य की स्थापना कर दी थी, जिसमे गुलबर्ग का एक बड़ा क्षेत्र इस साम्राज्य का हिस्सा था।
गुलबर्गा किला के रोचक तथ्य
- इस भव्य और ऐतिहासिक किले का निर्माण लगभग 14वीं शताब्दी में अल-उद-दीन बहमनी और आदिल शाह द्वारा करवाया गया था।
- इस किले का निर्माण करने वाली बहमनी सल्तनत दक्षिण भारत के दक्कन में पहली स्वतंत्र इस्लामी सल्तनत थी, जिसने अपने राज्य की स्थापना की थी, इस सल्तनत को महान मध्ययुगीन भारतीय साम्राज्यों में से एक माना जाता है।
- इस किले में बहमनी साम्राज्य के शासनकाल के दौरान तुर्की लोगो द्वारा 14वीं शताब्दी में गुलबर्गा किले की सबसे लंबी तोंप का निर्माण किया गया था, जोकि मिश्र धातु (पंच धातू) से मिलकर बनाई गई थी।
- इस किले में स्थापित तोंप का नाम “बारा गाजी तोंप” है, जोकि 29 फीट लंबी और 7 इंच मोटी है। इस तोंप की परिधि 7.6 फीट और व्यास लगभग 2 फीट है।
- मुगल सम्राट औरंगजेब ने वर्ष 1687 में इस किले पर कब्जा कर लिया और असफ़ाह प्रथम ("निजाम-उल-मुल्क") को दक्कन के राज्यपाल नियुक्त कर दिया था, जिसने इस किले की बागडोर आपने हाथ में ले ली थी।
- अगस्त 1947 में भारत के स्वतंत्र होने के बाद हैदराबाद राज्य (गुलबर्गा) को वर्ष 1948 में भारतीय संघ से जोड़ा दिया गया था और 1956 में हैदराबाद भाषाई आधार पर विभाजन हुआ, जिसके बाद इसका नाम बदलकर आंध्र प्रदेश रख दिया गया था।
- यह किला एक शुष्क क्षेत्र में स्थित है, जो साल के केवल 46 दिन ही वर्षा का अनुभव कर पता है, यह किला मात्र 46 दिन की वर्षा में ही मात्र 30.6 इंच तक पानी बचा लेता है।
- यह किला मात्र 0.20 हेक्टेयर के क्षेत्रफल में फैला हुआ है, जिसकी परिधि की कुल लंबाई 3 कि.मी. है।
- यह किला 2 मंजिला बना हुआ है जिसे बाहरी सुरक्षा दीवार से बहुत अच्छे से घेरा गया है।
- यह किला भारत के अन्य प्रसिद्ध किलो की ही तरह लगभग 30 फीट चौड़ा घास के मैदान से घिरा हुआ है।
- किला कर्नाटक में एक विशाल संरचना है, जिसमे 26 तोंपो के लिए 15 मीनारे अत्यधिक मजबूती से बनाई गई है।
- इस किले के अंदर स्थित प्रत्येक तोंप की लंबाई लगभग 8 मीटर है और ये सभी आज भी अच्छी तरह से संरक्षित है।
- दक्षिण भारत में पहली बार मस्जिद गुलबर्गा में बहमनी सल्तनत ने बनवाई थी जिसे “जामा मस्जिद” के नाम से जाना जाता है, यह मस्जिद भारत में अपनी तरह की एकमात्र मस्जिद है, जो लगभग 216 फीट लंबी और 176 फीट ऊँची है।
- इस मस्जिद के काबा-मुखी दीवार के आगे के बरामदे में 9 खण्ड कक्ष स्थित हैं, जिसके ऊपर एक बड़ा नक्काशी दार गुम्बज़ बनाया गया है।
- इस मस्जिद में कुल 5 बडे गुम्बद, 75 छोटे गुम्बद और लगभग 250 मेहराब स्थित है, जोकि विशिष्ट फ़ारसी वास्तुशैली में बनाए गये है।
- इस किले की अन्य सबसे प्रमुख संरचना में ख़्वाजा बंदे नवाज़ का मक़बरा प्रमुख है, जोकि जो भारतीय-मुस्लिम वास्तुशैली में बनाया गया है। इस संरचना के बारे में सबसे ख़ास बात यह कि 1413 ई. में प्रसिद्ध सूफ़ी सन्त सैय्यद मुहम्मद गेसू यहाँ पर आये थे।