एत्माद उद दौला आगरा संक्षिप्त जानकारी
स्थान | आगरा, उत्तर प्रदेश (भारत) |
निर्माण काल | 1622-28 |
निर्माता | नूरजहां |
प्रकार | मस्जिद |
वास्तुकला | इस्लामिक वास्तुकला |
एत्माद उद दौला आगरा का संक्षिप्त विवरण
उत्तर प्रदेश का आगरा शहर भारत के सबसे ऐतिहासिक शहरों में से एक है क्योकि प्राचीन काल में यहाँ पर बहुत से बड़े और खूबसूरत स्मारको का निर्माण किया गया था। ऐसा ही एक खूबसूरत स्मारक आगरा में स्थित एतमादुद्दौला का मकबरा है। इस मकबरे की भव्यता के कारण इसे बेबी ताज और ज्वेल बॉक्स भी कहा जाता है। विश्व के सात अजूबों में शामिल ताजमहल के कारण आगरा को ताजनगरी के रूप में भी जाना जाता है। मुगल सम्राटों ने आगरा में बहुत से किले, इमारतें और मकबरों का निर्माण करवाया था, जो इस शहर को देश के सबसे आकर्षक पर्यटन स्थलों में से एक बनाते हैं और हर दिन हजारों की संख्या में भारतीय और विदेशी पर्यटक यहाँ घूमने के लिए आते है।
एत्माद उद दौला आगरा का इतिहास
ताजमहल जैसी सुन्दर नक्काशी वाले इस मकबरे का निर्माण सन 1622-28 के बीच मुगल बादशाह जहाँगीर के शासनकाल के दौरान किया गया था। यह मकबरा मिर्जा ग्यासबेग और उनकी पत्नी अस्मत बेगम की कब्र है। मुगल सम्राट अकबर के बेटे जहांगीर ने अपनी बेगम नूरजहां के पिता मिर्जा गियास बेग को एतमादुद दौला का खिताब दिया था।
मिर्जा ग्यासबेग प्रसिद्ध मुगल बादशाह जहाँगीर की बेगम नूरजहाँ के पिता थे। मिर्जा ग्यासबेग ईरान के निवासी थे और सम्राट अकबर के दरबार में कार्यरत थे। जहाँगीर ने नूरजहाँ से निकाह करने के पश्चात उन्हें अपना बजीर बना दिया था। मिर्जा ग्यासबेग की पत्नी के देहांत के कुछ महीने बाद ही सन 1622 में आगरा में मृत्यु हो गयी थी और उनकी याद में बेटी नूरजहाँ ने इस यह मकबरा बनवाया था।
एत्माद उद दौला आगरा के रोचक तथ्य
- यमुना नदी के पूर्वी किनारे पर बना यह मकबरा 23 वर्गमीटर में फैला हुआ है।
- यह मकबरा एनएच-2 पर स्थित राम बाग सर्किल से सिर्फ दो कि.मी. दूरी पर स्थित है।
- इस मकबरे का निर्माण चार बाग नाम से मशहूर पर्सियन गार्डन के बीच में लाल पत्थर के खम्बों पर किया गया है।
- मुगलकालीन यह मकबरा अन्य मकबरों से अपेक्षाकृत छोटा है, जिसके कारण इसे कई बार श्रंगारदान भी कहा जाता है।
- भारत में बना यह पहला मकबरा है जिसे पूरी तरह सफ़ेद संगमरमर से निर्मित किया गया था। अपनी खूबसूरती के कारण यह मकबरा आभूषण बक्से के रूप में भी जाना जाता है।
- मकबरे की दीवारों पर पेड़-पौधों, जानवरों और पक्षियों के चित्रों की सुन्दर नक्काशी की गई हैं।
- यमुना के हिस्से को छोडकर स्मारक के तीनों तरफ लाल पत्थरो का परिकोटा बना हुआ है, स्मारक का मुख्य द्वार पूर्व दिशा की ओर है।
- पत्थर की उठी हुई पथिकाओ के मध्य में पानी की उथली नालियों ने स्मारक के बाग को एक समान चार भागो में विभाजित किया हुआ है। लाल पत्थर की यह पथिकाए मुख्य मकबरे व चारों तरफ की इमारतों को आपस में जोड़ती है।
- मकबरे के बचे हुए खाली भाग में पथिकाओ के किनारे सुंदर फूलो की क्यारियां व बीच में घास का मैदान बना हुआ है, जिसके बीच मुख्य संगमरमर का मकबरा एक ऊँचे चबूतरे पर बना हुआ है।
- मकबरे के भीतर मध्य में मुख्य हाल है, जिसमें मिर्जा ग्यासबेग और उनकी पत्नी अस्मत बेगम की सुनहरे रंग की नकली कब्रे बनी हुई है।
- स्मारक के मुख्य चौकोर हाल की छत रंगीन व सुनहरे रंग की बेहद सुन्दर कलाकारी से अलंकृत है।
- मुख्य हाल के चारों तरफ के कोनो में चार कमरे बने हुए है, जिनमे नूरजहाँ की बेटियों और उनके रिश्तेदारों की कब्रे बनी हुई है। यह चारों कमरे आपस में एक-दूसरे से जुड़े हुए है।
- मकबरे में कहीं-कहीं पर आदमियों के चित्रों को भी देखा जा सकता है जो एक अनोखी चीज है क्योंकि इस्लाम में मनुष्य का सजावट की चीज के रूप में इस्तेमाल करना मना होता है।
- मकबरे की दीवारों पर अर्ध कीमती पत्थरों जैसे जैस्पर और टोपाज एवं शराब की बोतलों के रूप में उकेरी हुई नक्काशियाँ बहुत ही अद्भुत दिखाई पड़ती हैं।
- बेबी ताज के नाम से मशहूर इस मकबरे की नक्काशी इतनी सुन्दर है कि बाद में ताजमहल बनाते समय उन्हें अपना लिया गया था। बहुत से पर्यटकों को यहाँ की कई नक्काशी ताजमहल से भी ज्यादा अच्छी लगती है।
- केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय ने इस मकबरे को आदर्श स्मारक का दर्जा प्रदान किया हुआ है।
- मकबरे में भारतीय पर्यटकों का टिकट शुल्क मात्र 10 रूपये और 15 साल से छोटे बच्चो के लिए कोई टिकट नहीं है। वही विदेशी पर्यटकों के लिए टिकट शुल्क 110 रूपये है। पूरे स्मारक में फोटोग्राफी मुफ्त है पर वीडियोग्राफी के लिए 25 रूपये का टिकट शुल्क लगता है।