जगन्नाथ मंदिर संक्षिप्त जानकारी

स्थानपुरी, ओडिशा (भारत)
निर्माणकाल7वीं सदी
निर्माताअनंतवर्मन चोडगंग देव
प्रकारहिन्दू मंदिर
वास्तुकला शैलीकलिंग शैली
मुख्य देवी-देवताजगन्नाथ (श्री कृष्ण)

जगन्नाथ मंदिर का संक्षिप्त विवरण

दुनिया भर में प्रसिद्ध श्री जगन्नाथ मंदिर ओडिशा राज्य के तटवर्ती शहर पुरी में स्थित है। इस मंदिर को हिन्दुओं के चार धाम में से एक गिना जाता है। यह वैष्णव सम्प्रदाय का मंदिर है, जो भगवान विष्णु के अवतार जगन्नाथ (श्री कृष्ण) को समर्पित है।

जगन्नाथ को विष्णु भगवान का 10वां अवतार माना जाता हैं। जगन्नाथ शब्द का अर्थ जगत के स्वामी होता है, इनकी नगरी को जगन्नाथपुरी या पुरी भी कहा जाता है। यह भव्य मंदिर श्री कृष्ण के भक्तों की आस्था का केंद्र ही नहीं बल्कि वास्तुकला का भी अद्भुत नमूना है।

इस मंदिर की बनावट ऐसी हैं जिनका भेद इंजिनयरिंग के क्षेत्र में बड़ी-बड़ी डिग्रियां लेने वाले भी नहीं कर पायें हैं। इस मंदिर को देखने के लिए प्रतिदिन हजारो की संख्या में श्रद्धालु पुरी आते है।

जगन्नाथ मंदिर का इतिहास

इस विश्व प्रसिद्ध मंदिर के निर्माण का पहला प्रमाण देश के महाकाव्य महाभारत के वनपर्व में मिलता है। कहा जाता है कि सबसे पहले सबर आदिवासी विश्‍ववसु ने नीलमाधव के रूप में इनकी पूजा की थी। आज भी पुरी के मंदिरों में कई सेवक हैं, जिन्हें दैतापति के नाम से जाना जाता है।

पुरी स्थापित इस मंदिर का निर्माण 7वीं सदी में कलिंग राजा अनंतवर्मन चोडगंग देव द्वारा करवाया गया था। मंदिर के जगमोहन और विमान भाग इनके शासन काल (1078-1148) में बने थे। अफगान जनरल काला पहाड़ ने ओडिशा पर हमला किया और मूर्तियां तथा मंदिर के भाग ध्वंस किए और पूजा बंद करा दी थी।

यह मंदिर 3 बार धवस्त किया चुका है। सन 1197 में ओडिआ शासक अनंग भीमदेव ने इसका जीर्णोद्धार करवाया और मंदिर को वर्तमान रूप दिया। सन 1558 में अफगान जनरल काला पहाड़ ने ओडिशा पर हमला किया और मंदिर को काफी क्षति पहुंचाई और पूजा बंद करा दी। बाद में, रामचंद्र देब के खुर्दा में स्वतंत्र राज्य स्थापित करने पर, मंदिर और इसकी मूर्तियों की पुनर्स्थापना की गयी थी। मुख्‍य मंदिर के आसपास लगभग 30 छोटे-बड़े मंदिर स्थापित हैं।

जगन्नाथ मंदिर के रोचक तथ्य

  1. पुरी में बना यह भव्य मंदिर लगभग 400,000 वर्ग फुट (37,000 मी2) के क्षेत्रफल में फैला हुआ है और चारदीवारी से घिरा है।
  2. स्थापत्यकला और शिल्पकला की कलिंग शैली में निर्मित यह मंदिर भारत के भव्यतम स्मारक स्थलों में से एक है।
  3. मुख्य मंदिर वक्ररेखीय आकार का है, मंदिर का ऊपरी भाग भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र (आठ आरों का चक्र) से सुशोभित है, जिसे नीलचक्र भी कहा जाता हैं।
  4. सुदर्शन चक्र अष्टधातु से मिलकर बनाया गया है, जिसे अति पावन और पवित्र माना जाता है।
  5. मंदिर की मुख्य इमारत का निर्माण एक 214 फीट (65 मी॰) ऊंचे पाषाण चबूतरे पर किया गया है।
  6. मंदिर के भीतर आंतरिक गर्भगृह में एक रत्न मण्डित पाषाण चबूतरे पर मुख्य देवी-देवताओं भगवान जगन्नाथ, बलराम और सुभद्रा की मूर्तियां स्थापित हैं।
  7. मंदिर का मुख्य मढ़ी (भवन) एक 20 फीट (6.1 मी॰) ऊंची दीवार से घिरा हुआ है तथा दूसरी दीवार मुख्य मंदिर को घेरती है।
  8. मंदिर के मुख्य द्वार के ठीक सामने एक सुन्दर 16 किनारों वाला एकाश्म खंबा (स्तम्भ) स्थित है। इसका द्वार दो सिंहों द्वारा रक्षित हैं।
  9. यह मंदिर गौड़ीय वैष्णव संप्रदाय के लिये खास महत्व रखता है। मंदिर वैष्णव परंपराओं और संत रामानंद से जुड़ा हुआ है।
  10. मंदिर के शिखर पर एक झंडा स्थित है, जो सदैव हवा के विपरीत दिशा में लहराता है।
  11. पिछले 1800 वर्ष से मंदिर का कोई ना कोई एक पुजारी 215 फीट (65 मीटर) ऊँची चोटी पर चढ़कर प्रतिदिन ध्वज को बदलता है।
  12. मंदिर के मुख्य गुंबद को इस प्रकार बनाया गया है कि दिन भर में इसकी परछाई एक बार भी भूमि पर नहीं दिखती है।
  13. जगन्नाथ मंदिर की रसोई भारत की सबसे बड़ी रसोई के रूप में जानी जाती है। इस विशाल रसोई में भगवान को चढाने वाले महाप्रसाद को तैयार करने के लिए 500 रसोईए तथा उनके 300 सहयोगी काम करते हैं।
  14. मंदिर की रसोई में प्रसाद पकाने के लिए 7 बर्तन एक-दूसरे के ऊपर रखे जाते हैं। यह प्रसाद मिट्टी के बर्तनों में लकड़ी पर ही पकाया जाता है। इस दौरान सबसे ऊपर रखे बर्तन का पकवान पहले पकता है फिर नीचे की तरफ़ से एक के बाद एक प्रसाद पकता जाता है।
  15. यहां कई वार्षिक त्यौहार भी आयोजित होते हैं, लेकिन मंदिर का जून या जुलाई माह में आयोजित होने वाला वार्षिक रथयात्रा उत्सव दुनियाभर में प्रसिद्ध है। इसमें मंदिर के तीनों मुख्य देवता, भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा की तीन अलग-अलग भव्य और सुसज्जित रथयात्रा निकाली जाती हैं।
  16. अक्सर समुद्री इलाकों में दिन के समय हवा का बहाव समुद्र से धरती की तरफ होता है जबकि शाम के समय बहाव धरती से समुद्र की ओर होता है, लेकिन यहां भगवान जगन्नाथ की माया इसे उल्टा कर देती है और दिन में धरती से समुद्र की ओर तथा शाम को समुद्र से धरती की ओर हवा का बहाव होता है।
  17. ओडिशा सरकार ने जून 2018 में जगन्नाथ मंदिर प्रशासन (एसजेटीएस) के मुख्य प्रशासक प्रदीप कुमार जेना को हटाकर उनके स्थान पर पी के महापात्र को नियुक्त किया था। मंदिर में मुखिया का फेरदबल उसके रत्नभंडार के भीतरी कक्ष की चाभियां खोने के कारण किया गया था।
  18. मंदिर के अन्दर केवल हिन्दू संप्रदाय के लोग ही प्रवेश कर सकते है, गैर-हिन्दू लोगों का मदिर में प्रवेश सर्वथा वर्जित है।

  Last update :  Wed 3 Aug 2022
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