कामाख्या मंदिर संक्षिप्त जानकारी
स्थान | गुवाहाटी, असम (भारत) |
निर्माता | चिलाराय |
प्रकार | मंदिर |
देवता | कामाख्या देवी |
कामाख्या मंदिर का संक्षिप्त विवरण
कामाख्या मंदिर उत्तर पूर्वी भारतीय राज्य असम के सबसे बड़े शहर गुवाहाटी से मात्र 8 कि.मी. की दूरी पर स्थित देश के प्रसिद्ध मंदिरो में से एक है। यह देवी सती के 51 शक्तिपीठों में से सबसे पुराना है। शक्ति की देवी सती को समर्पित यह मंदिर नीलांचल अथवा नीलशैल पर्वतमालाओं पर बना है और इसका तांत्रिक महत्व भी है। इसे देखने हर साल लाखों की संख्या में दुनियाभर से पर्यटक आते है।
कामाख्या मंदिर का इतिहास
कामरूप पर बहुत से हिंदू राजाओं ने शासन किया था। मान्यताओं के अनुसार, ऐसा माना जाता है कि 16वीं शताब्दी में कामरूप राज्यों में लड़ाईयां होने लगी, जिसमें कूचविहार रियासत के राजा विश्वसिंह को विजय प्राप्त हुई।
इस युद्ध के दौरान राजा विश्व सिंह के भाई लापता हो गए थे और उन्हें ढूंढने के लिए वे घूमत-घूमते नीलांचल पर्वत पर पहुंच गए। वहां उन्हें एक बूढी औरत दिखाई दी।
उस महिला ने राजा को इस जगह के महत्व और यहां पर कामाख्या पीठ होने के बारे में बताया। उस औरत की बातों पर विश्वास करके राजा ने इस जगह की खुदाई शुरु करवाई। खुदाई के समय कामदेव द्वारा बनवाए हुए मूल मंदिर का निचला हिस्सा बाहर निकला। राजा ने उसी मंदिर के ऊपर नया मंदिर बनवाया। कहा जाता है कि 1564 में मुस्लिम आक्रमणकारियों ने मंदिर को तोड़ दिया था, जिसका पुनर्निर्माण अगले साल राजा विश्वसिंह के पुत्र नरनारायण ने करवाया था।
कामाख्या मंदिर के रोचक तथ्य
- आपको ये जानकार आश्चर्य होगा कि इस मंदिर में देवी की कोई प्रतिमा उपलब्ध नहीं है, यहां पर बस देवी के योनि हिस्से की ही पूजा और आराधना की जाती है।
- इस मंदिर को तंत्र विद्या का सबसे बढ़ा गढ़ माना जाता है और प्रतिवर्ष जून माह में यहां अंबुवासी मेले का आयोजन किया जाता है। भारत के सभी हिस्सों से साधु-संत और तांत्रिक यहां पर इकट्ठे होते हैं और तंत्र साधना करते हैं।
- यह मंदिर देवी के 51 शक्तिपीठों में शामिल है। भगवान शिव का मोह भंग करने के लिए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर के 51 भाग कर दिए थे और जिस-जिस जगह पर माता सती के शरीर के अंग गिरे उनको शक्तिपीठ कहा जाता है।
- मंदिर का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा जमीन से लगभग 20 फीट नीचे एक गुफा में स्थित है।
- यह मंदिर हर महीने तीन दिनों के लिए बंद रहता है।
- इस मंदिर में दस महाविद्या, काली, तारा, षोडशी, भुवनेश्वरी, छिन्नमस्ता, भैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी और कमला आदि की भी पूजा की जाती है।
- यहां पर बलि चढ़ाने की भी प्रथा है। इसके लिए मछली, बकरी, कबूतर और भैंसों के साथ ही लौकी, कद्दू जैसे फल वाली सब्जियों की भी बलि भी दी जाती है।
- यहां पर हर साल पूस माह में भगवान कामेश्वर और देवी कामेश्वरी के बीच प्रतीकात्मक शादी के रूप में पूजा की जाती है।
- यहाँ आए हुए भक्तों को प्रसाद के रूप में एक गीला कपड़ा दिया जाता है, जिसे अम्बुवाची वस्त्र कहा जाता हैं।
- उमानंद भैरव शक्तिपीठ के भैरव हैं, इस मंदिर के समीप ही उमानंद भैरव का भी मंदिर है, यह मंदिर ब्रह्मपुत्र नदी के बीच में है। ऐसा माना जाता है कि यदि आपने उमानंद भैरव के दर्शन नहीं किये तो कामाख्या देवी की यात्रा को अधूरा माना जाता है।