केदारनाथ मंदिर संक्षिप्त जानकारी
स्थान | रूद्रप्रयाग जिला, उत्तराखंड (भारत) |
निर्माण काल | 12-13वीं शताब्दी (महापण्डित राहुल सांकृत्यायन के अनुसार) |
प्रकार | मंदिर |
समर्पित | शिव |
केदारनाथ मंदिर का संक्षिप्त विवरण
भारतीय राज्य उत्तराखंड के रूद्रप्रयाग जिले में स्थित केदारनाथ मंदिर को केदारनाथ धाम के नाम से भी जाना जाता है। उत्तराखण्ड में हिमालय पर्वत की गोद में बसा भगवान् शिव को समर्पित सबसे विशाल मन्दिर है। यह मंदिर 12 ज्योतिर्लिंग में सम्मिलित होने के साथ 4 धाम और पंच केदार में से भी एक है। यहाँ की प्रतिकूल जलवायु के कारण यह मन्दिर अप्रैल से नवंबर माह के मध्य ही दर्शन के लिए खुलता है। उत्तराखण्ड में मौजूद तीर्थ स्थलों में बद्रीनाथ और केदारनाथ मंदिर का अपना ही विशेष महत्व है।
केदारनाथ मंदिर का इतिहास
इस मंदिर के निर्माण के कोई प्रमाणित साक्ष्य उपलब्ध नहीं है, लेकिन लगभग 1000 सालों से यह मंदिर उत्तराखंड राज्य के सबसे महत्वपूर्ण तीर्थ स्थलों में एक रहा है। इतिहासकारों के अनुसार सर्वप्रथम पांडवों द्वारा मौजूदा मंदिर के पीछे ही केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग के प्राचीन मंदिर का निर्माण करवाया गया था, लेकिन यह मंदिर समय के साथ लुप्त हो गया।
बाद में अभिमन्यु के पौत्र जनमेजय ने इसका जीर्णोद्धार (पुनर्निर्माण) किया था। 8वीं शताब्दी के दौरान आदिशंकराचार्य ने एक नए मंदिर का निर्माण कराया, जो 400 सालों तक बर्फ में दबा रहा। महापण्डित राहुल सांकृत्यायन के अनुसार ये मंदिर 12-13वीं शताब्दी के मध्य बना था।
एक अन्य इतिहासकार डॉ. शिव प्रसाद डबराल मानते हैं कि शैव लोग आदि शंकराचार्य से पहले से ही केदारनाथ जाते रहे हैं, तब भी यह मंदिर मौजूद था। वर्ष 1882 के इतिहास के अनुसार स्वच्छ मुखभाग के साथ मंदिर एक बहुत सुन्दर भवन था, जिसके साथ पूजन मुद्रा में मूर्तियां हैं।
मन्दिर में दर्शन का समय:
- मन्दिर आम दर्शनार्थियों के लिए सुबह 6:00 बजे खुलता है।
- मन्दिर के अन्दर दोपहर 3 से 5 बजे तक विशेष पूजा होती है और उसके बाद मन्दिर बन्द कर दिया जाता है।
- इसके बाद शाम 7:30 बजे से 8:30 बजे तक पाँच मुख वाली भगवान शिव की प्रतिमा का विधिवत श्रृंगार करके रोजाना आरती की जाती है।
- केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग का मन्दिर रात्रि 8:30 बजे बन्द कर दिया जाता है।
- सर्दियों में केदारघाटी पूरी तरह से बर्फ़ से ढँक जाती है। यद्यपि केदारनाथ-मन्दिर के खोलने और बन्द करने का मुहूर्त निकाला जाता है, किन्तु यह सामान्यत: नवम्बर माह की 15 तारीख से पूर्व (वृश्चिक संक्रान्ति से दो दिन पूर्व) बन्द हो जाता है और 6 माह बाद अर्थात वैशाखी (13-14 अप्रैल) के बाद द्वार खुलता है।
- ऐसी स्थिति में केदारनाथ की पंचमुखी प्रतिमा को ‘उखीमठ’ में लाया जाता हैं। इसी प्रतिमा की पूजा यहाँ भी रावल जी करते हैं।
- केदारनाथ में जनता शुल्क जमा कराकर रसीद प्राप्त करती है और उसके अनुसार ही वह मन्दिर की पूजा-आरती कराती है अथवा भोग-प्रसाद ग्रहण करती है।
केदारनाथ मंदिर के रोचक तथ्य
- यह मंदिर हिमालय की केदार नामक चोटी पर स्थित है।
- यह मंदिर भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में सबसे ऊंचा है।
- मंदिर के अंदर भगवान शिव की प्रतिमा लिंगम के रूप विराजमान है और यह 3.6 मिमी की परिधि के साथ 3.6 मीटर ऊंचा है।
- यह मंदिर 85 फुट ऊंचा, 187 फुट लंबा और 80 फुट चौड़ा है।
- यह मन्दिर एक 6 फीट (1.8288 मीटर) ऊँचे चौकोर चबूतरे पर बना हुआ है।
- देश के सबसे बड़े इस शिव मंदिर को भूरे रंग के कटवां पत्थरों के बड़े-बड़े शिलाखंडों को एकत्रित करके बनाया गया है।
- विशाल शिलाखंडों को एक-दूसरे में जोड़ने के लिए इंटरलॉकिंग शिल्पकला (तकनीक) का इस्तेमाल किया गया है।
- मंदिर के अंदर पहले हॉल में शिव के पांच पांडव भाइयों, भगवान कृष्ण, नंदी, शिव और वीरभद्र के वाहन की प्रतिमाएँ हैं।
- मंदिर के गर्भगृह में अर्धा के पास चारों कोनों पर 4 मजबूत पाषाण खम्बे हैं, जहां से होकर प्रदक्षिणा होती है।
- मंदिर के सामने एक छोटा स्तंभ है, जिसमें पार्वती और पाँचों पांडव राजकुमारों के चित्र हैं।
- मंदिर का सभामंडप विशाल एवं भव्य है, जिसकी छत 4 विशाल पाषाण स्तंभों पर टिकी है। विशालकाय छत एक ही पत्थर की बनी है।
- गवाक्षों (खिड़की) में 8 पुरुष प्रमाण मूर्तियां हैं, जो दिखने में अत्यंत सुन्दर (रचनात्मक) प्रतीत होती हैं।
- मंदिर के पीछे आदि शंकराचार्य का समाधि मंदिर है और स्थानीय लोगो के अनुसार उन्होंने केदारनाथ मंदिर में महासमाधि प्राप्त की थी।
- केदारनाथ धाम और मंदिर तीन तरफ से पहाड़ों से घिरा हुआ है। इसके एक तरफ केदारनाथ है जिसकी ऊंचाई लगभग 22 हजार फुट है, दूसरी तरफ खर्चकुंड है, जिसकी ऊंचाई लगभग 21 हजार 600 फुट है और तीसरी तरफ भरतकुंड है जो करीब 22 हजार 700 फुट ऊंचा है।
- तीन पहाड़ों के अलावा इस मंदिर पर पांच नदियों (मंदाकिनी, मधुगंगा, क्षीरगंगा, सरस्वती और स्वर्णगौरी) का संगम भी है। इन 5 नदियों में से कुछ नदियाँ लुप्त हो गयी है, लेकिन अलकनंदा की सहायक मंदाकिनी नदी आज भी मौजूद है।
- वर्ष 2013 की बाढ़ के दौरान केदारनाथ सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्र था जिससे मंदिर परिसर के आसपास क्षेत्रों, और केदारनाथ शहर को व्यापक क्षति हुई थी, लेकिन मंदिर की संरचना को कोई प्रमुख क्षति नहीं हुई थी जिसके बाद मंदिर को तीर्थयात्रियों के लिए एक साल तक बंद कर दिया गया था।