महाबोधि मंदिर संक्षिप्त जानकारी
स्थान | बोध गया, बिहार (भारत) |
प्रकार | मंदिर |
समर्पित | भगवान बुद्ध |
संस्थापक | राजा अशोक |
वास्तुकला शैली | द्रविड़ वास्तुकला |
महाबोधि मंदिर का संक्षिप्त विवरण
देश के पूर्वोत्तर भाग में स्थित भारतीय राज्य बिहार के बोधगया में बना महाबोधि मंदिर एक पवित्र बौद्ध धार्मिक स्थल है। यह वही स्थान है जहाँ पर महात्मा गौतम बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था। यह मंदिर भारत के सबसे पहले बौद्ध मंदिरों में से एक है। इस मंदिर की बनाबट में द्रविड़ वास्तुकला शैली की झलक साफ़ दिखाई देती है। हर साल बौद्ध धर्म के अनुयायी प्रसिद्ध महाबोधि मंदिर के दर्शन के लिए देश-विदेश से बोध गया आते हैं।
महाबोधि मंदिर का इतिहास
महाबोधि मंदिर का निर्माण बोध गया में उस स्थान पर किया गया है, जहां पर भगवान बुद्ध को पहला ज्ञान प्राप्त हुआ था। महात्मा बुद्ध का संबंध 5वीं और 6वीं शताब्दी ईसापूर्व से है। इस मंदिर का इतिहास काफी रोचक है, जो मौर्य शासक सम्राट अशोक से जुड़ा है।
जानकारों द्वारा लगाए गए अनुमान के अनुसार राजा अशोक को महाबोधि मंदिर का संस्थापक माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि तीसरी शताब्दी ईसापूर्व में सम्राट अशोक, जो बौद्ध धर्म ग्रहण करने वाले पहले शासक थे उन्होंने इस मंदिर में अपने विशिष्ट पहचान वाले खंबे लगवाए थे, जिनके शीर्ष पर हाथी बना होता था। वर्तमान में बने मंदिर का निर्माण पांचवीं या छठवीं शताब्दी में किया गया था।
महाबोधि मंदिर के रोचक तथ्य
- सबसे प्रारंभिक बौद्ध मंदिरों में से एक इस मंदिर का निर्माण पूरी तरह से ईंटों से किया गया है, और पूर्वी भारत में जीवित रहने वाली सबसे पुरानी ईंट संरचनाओं में से एक है जो गुप्तशासनकाल से अब तक वैसा ही खड़ा है।
- यूनेस्को के अनुसार, "वर्तमान मंदिर की संरचना को शीघ्रता और सबसे प्रभावशाली संरचना के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है
- सम्राट अशोक द्वारा निर्मित प्रथम मंदिर में एक कटघरा और स्मारक स्तंभ भी बनवाया गया था।
- इस मंदिर की केन्द्रीय लाट 55 मीटर ऊँची है और इसकी मरम्मत 19 वीं शताब्दी में बर्मी शासकों के द्वारा की गई थी जिसके साथ ही मंदिर परिसर के चारों की दीवारों का भी पुनः निर्माण किया गया था।
- 1880 ई॰ में मंदिर को भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण के संस्थापक अलेक्जेंडर कनिंघम और एक फोटोग्राफर जोसेफ डेविड बेगलर के निर्देशानुसार मंदिर के कुछ भागों की पुनः मरम्मत कारवाई गई थी।
- द्रविड़ वास्तुकला शैली में बनी 4 छोटी लाटों ने केन्द्रीय लाट को चारों तरफ से घेर रखा हैं।
- मंदिर चारों ओर से 2 मीटर ऊँची पत्थरों की बनी चारदीवारी से घिरा हुआ है।
- इसकी बनावट सम्राट अशोक द्वारा स्थापित स्तुप के समान ही है।
- मंदिर के भीतरी भाग में भगवान् गौतम बुद्ध की एक बहुत विशाल प्रतिमा स्थापित है, जो पदमासन मुद्रा में है।
- मंदिर के अन्दर बनी भगवान् बुद्ध की मूर्ति के आगे भूरे बलुए पत्थर पर बुद्ध के विशाल पदचिन्ह भी मौजूद हैं, जिन्हें धर्मचक्र प्रर्वतन का प्रतीक भी कहा जाता है।
- इस मंदिर की कुछ दिवारों पर कमल के फूल की आकृति जबकि कुछ चारदिवारों पर सूर्य, लक्ष्मी और कई अन्य हिन्दू देवी-देवताओं की आकृतियाँ बनी हुई हैं।
- जातक कथाओं में उल्लेखित विशाल बोधि पीपल वृक्ष भी यहां पर मौजूद है, जो पीछे के भाग में स्थित है। महात्मा बुद्ध को इसी वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ था।
- मंदिर के उत्तर-पश्चिम दिशा में एक छतविहीन भग्नावशेष है, जिसे रत्नाघारा के नाम से जाना जाता है। इसी स्थान पर बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ति के बाद चौथा सप्ताह व्यतीत किया था।
- मंदिर के पश्चिमी भाग में केवल पांच मिनट की पैदल दूरी पर बोधगया का सबसे बड़ा और पुराना मठ स्थित है, जिसका निर्माण 1934 ई. में किया गया था।
- साल 2002 में यूनेस्को द्वारा इस मंदिर को विश्व विरासत स्थल के रूप में घोषित किया गया था और इस क्षेत्र की सभी धार्मिक कलाकृतियां वर्ष 1878 के ट्रेजर ट्राव एक्ट के तहत कानूनी रूप से संरक्षित हैं।
- 2013 में, मंदिर का ऊपरी हिस्सा 289 किलोग्राम सोने से ढंका था और यह सोना थाईलैंड के राजा और बुद्ध भक्तों के लिए एक उपहार के रूप में भेजा गया गया था और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की मंजूरी के साथ स्थापित किया गया था।
- 7 जुलाई 2013 को महाबोधि मंदिर परिसर में लगातार 8 बम विस्फोट हुए थे, जिसमें दो भिक्षुओं समेत पांच लोग घायल हुए थे।