मीनाक्षी मंदिर संक्षिप्त जानकारी
स्थान | मदुरई, तमिलनाडु (भारत) |
उपनाम | मीनाक्षी सुन्दरेश्वरर मन्दिर, मीनाक्षी अम्मां मन्दिर |
स्थापित | छठी शताब्दी ईसा पूर्व |
वास्तुकला | द्रविड़ वास्तुकला |
प्रकार | धार्मिक स्थल, मंदिर |
प्रमुख त्यौहार | चित्तिराई तिरुविझा |
मीनाक्षी मंदिर का संक्षिप्त विवरण
विश्व के सबसे सुंदर, भव्य और रोचक मन्दिरों में से एक मीनाक्षी मंदिर दक्षिण भारत के तमिलनाडु राज्य के मदुरई नगर में स्थित है। मीनाक्षी मंदिर भारत के सबसे धनी व ऐतिहासिक मन्दिरों में से एक है। भारत के हर एक क्षेत्र की अपनी एक अनोखी वास्तुकला व शिल्प कौशल शैली है फिर भी दक्षिण भारत की स्थापत्य शैली भारत की सबसे अनोखी शैली है।
मीनाक्षी मंदिर का इतिहास
इस मंदिर का इतिहास काफी धुंधला है क्यूंकि इसके बारे में कुछ भी स्पष्ट रूप से कंही भी उल्लेख नही मिलता है लेकिन माना जाता है कि इसका निर्माण लगभग 2000 साल शुरू हुआ था। तमिल साहित्यों में पिछली दो सदियों से इस मंदिर की बाते की जा रही है।
सेवा दर्शनशास्त्र के महान ज्ञाता हिन्दू संत थिरुग्ननासम्बंदर ने इस मंदिर का वर्णन 7वी शताब्दी के प्रारंभ से पहले ही कर दिया और स्वयं को इरावियन (Iravan) का भक्त भी माना था। उन्होंने इस मंदिर में वसंता मंडप और किलिकूंदु मंडप का भी निर्माण करवाया था।
मंदिर में एक बेहद खूबसूरत गलियारा है जिसके बीच में रानी मंगम्मल द्वारा मीनार्ची नायकर मंडपम का निर्माण करवाया गया था। इस मंदिर के निर्माण के लिये प्राचीन पांडियन राजा ने लोगों से कर (Tax) भी एकत्रित किया था।
इस मंदिर के वर्तमान स्वरुप को 1623 और 1655 ई. के बीच बनाया गया था। ऐसा माना जाता है कि वास्तव में इस मंदिर का निर्माण छठी शताब्दी में कुमारी कंदम के उत्तरवियो ने बनाया था। 14वीं शताब्दी में एक मुगल सेनापति मलिक काफूर ने इस मंदिर को लूट लिया था और मंदिर को क्षति भी पंहुचाई थी जिसके बाद वंहा के शासक और सामन्य लोगो ने इसकी पुन: मरम्मत करवाई थी।
मीनाक्षी मंदिर के रोचक तथ्य
- यह अद्भुत मंदिर लगभग 6 हेक्टेयर क्षेत्रफल में फैला हुआ है, जिसमे कई ओर छोटे मंदिर भी सम्मिलित है।
- इस भव्य मंदिर में कुल 14 गोपुरम है, जिनकी ऊंचाई 45-50 मीटर के बीच में है, इनमे सबसे ऊँचा गोपुरम दक्षिण में स्थित है जिसकी कुल ऊंचाई लगभग 51.9 मीटर है।
- इस मंदिर में लगभग 1,000 से अधिक स्तंभ है, जिन पर विभिन्न देवी देवताओ और विभिन्न प्रकार की नक्काशी की गई है।
- इस मंदिर में सबसे पुराना स्थान इसका गर्भ गृह माना जाता है, जिसे लगभग 3000 वर्षों से भी ज्यादा पुराना बताया जाता है।
- इस मंदिर और इसके गोपुरमो पर विभिन्न हिन्दू देवी देवताओ की मुर्तियाँ बनाई गई है जिनकी कुल संख्या लगभग 33,000 तक मानी जाती है।
- इस मंदिर के 8 स्तभों पर देवी लक्ष्मी जी की मूर्तियां बनाई गयी हैं।
- इस मंदिर परिसर के भीतर पवित्र सरोवर भी स्थित है, जिसे पोत्रमरै कुलम कहा जाता है यह 165 फीट लम्बा एवं 120 फीट चौड़ा है, जिसके बीच में एक सोने का कमल भी स्थित है जिसके कारण इसे स्वर्ण कमल वाला सरोवर भी कहा जाता है।
- इस मंदिर में एक जुड़वां मंदिर भी शामिल हैं, जो देवी मीनाक्षी और भगवान सुन्दरेश्वर के है। इन जुड़वाँ मंदिर के ऊपर सोने ने अभयारण्य चढ़ाए गये है।
- इस मंदिर में एक विशाल नटराज की मूर्ति भी है, जोकि एक विशालकाय चांदी की वेदी में संलग्न है इसलिए इसे वेली अंबलम कहा जाता है।
- कुछ हिन्दू पौराणिक कथाओ के अनुसार ऐसा माना जाता है कि जब इंद्र एक पाप का पश्चाताप करने के लिये एक तीर्थ यात्रा पर जा रहे थे, तब इस मंदिर का निर्माण उन्होंने ही करवाया था।
- हिन्दू पौराणिक कथा के अनुसार यह भी माना जाता है कि भगवान शिव सुन्दरेश्वर के रूप में अपने गणों के साथ राजा मल्यध्वज की पुत्री मिनाक्षी देवी (पार्वती) उनसे विवाह रचाने इस नगर में आए थे।
- मंदिर में बहुत सारे उत्सव मनाए जाते हैं हर शुक्रवार को मीनाक्षी देवी तथा सुन्दरेश्वर भगवान की स्वर्ण प्रतिमाओं को झूले में झुलाया जाता हैं जिनके दर्शन के लिए हज़ारों की संख्या में भक्त इस उत्सव में पहुंचते हैं।