नैना देवी मंदिर संक्षिप्त जानकारी
स्थान | नैनीताल उत्तराखण्ड (भारत) |
निर्माण | 1883 (वर्तमान स्वरूप) |
निर्माता | अमरनाथ शाह (इतिहासकारों के अनुसार) |
प्रकार | हिन्दू मंदिर |
मुख्य देवता | नैना देवी |
नैना देवी मंदिर का संक्षिप्त विवरण
नैना देवी मंदिर, उत्तराखंड राज्य के नैनीताल शहर में नैनी झील के उत्त्तरी किनारे पर स्थित है। नैनीताल शहर भारत के सबसे खूबसूरत शहरों में एक है। नैनीताल को झीलों के शहर या लेक डिस्ट्रिक्ट के नाम से भी जाना जाता है।
शहरवासियों समेत लोगों की मंदिर से जुड़ी आस्था का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जो भी सैलानी गर्मियों के मौसम में नैनीताल की खूबसूरती और ठंडे मौसम का मजा लेने आते है वह इस भव्य मंदिर में दर्शन के लिए अवश्य जाते है, माना जाता है कि देवी के दर्शन करने से सभी भक्तजनों की मनोकामना पूरी हो जाती है।
देश के सबसे लोकप्रिय हिल स्टेशन नैनीताल की कुमाऊँ पहाड़ियां और खूबसूरत झीले पर्यटकों को अपनी आकर्षित करती है, इसलिए हर साल लाखों पर्यटक यहां घूमने आते हैं।
नैना देवी मंदिर का इतिहास
नैनीताल शहर में बने नैनी देवी मंदिर 51 शक्ति पीठों में से एक के रूप में माना जाता है। ज्ञात हो कि साल 1880 में शहर में आए भयंकर भूस्खलन से यह मंदिर नष्ट हो गया था। बाद में यह मंदिर साल 1883 में शहर के प्रमुख व्यवसायी मोती राम साह के पुत्र अमर नाथ साह ने अपने मित्रों की मदद से नए सिरे से मंदिर का निर्माण किया। यह मंदिर हिंदू देवी, ‘नैना देवी’ को समर्पित है।
नैना देवी मंदिर की पौराणिक मान्यता:
पौराणिक कथा के अनुसार महाराज दक्ष प्रजापति की पुत्री सती का विवाह भगवान शिव के साथ हुआ था। महाराज दक्ष प्रजापति शिव को पसन्द नहीं करते थे। एक बार राजा दक्ष ने अपने यहाँ पर यज्ञ करवाया, जिसमे सभी देवताओं को बुलाया गया, परन्तु अपने दामाद शिव और पुत्री सती को निमन्त्रण तक नहीं दिया।उमा हठ कर इस यज्ञ में पहुँची। यज्ञ में शिव की आहुति न दिये जाने से अपमानित देवी ने आत्मदाह कर लिया था।
जब शिव को यह ज्ञात हुआ कि उनकी पत्नी सती ने आत्मदाह कर लिया है तो गुस्साएं भगवान शिव ने तांडव करते हुए दक्ष की यज्ञशाला नष्ट कर दी और सती का शव लेकर कैलाश पर्वत की ओर जाने लगे। ऐसी स्थिति में जहाँ-जहाँ पर माता सती के शरीर के अंग गिरे, वहाँ - वहाँ पर शक्ति पीठ हो गए। जहाँ पर देवी के नैन गिरे थे, वही स्थान आज का नैनीताल है।
नैना देवी मंदिर के रोचक तथ्य
- नैनी देवी मंदिर एक ‘शक्ति पीठ’ है, जो नैनीताल, उत्तराखण्ड में नैनी झील के पास स्थित है।
- इस मंदिर में नैना देवी की प्रतिमा के साथ भगवान श्री गणेश और काली माता की मूर्तियाँ भी प्रतिष्ठापित हैं।
- नैनी झील के बारें में माना जाता है कि जब भगवान शिव और माता सती के मृत शरीर को लेकर कैलाश पर्वत जा रहे थे, तब जहां-जहां उनके शरीर के अंग गिरे, वहां शक्तिपीठों की स्थापना हुई थी, यह मंदिर भी उन्ही शक्ति पीठो में से एक है।
- नैनीताल शहर की स्थापना यहां मौजूद नैनी झील के कारण हुई है, ऐसा माना जाता है कि यहां पर देवी सती की आँखें गिरी थी और इसी से प्रेरित होकर इस मंदिर की स्थापना की गई है।
- मंदिर के अन्दर दो नेत्र बने हुए हैं, जो माता नैना देवी को दर्शाते हैं।
- यहाँ पर भगवान शिव की पत्नी और हिंदू देवी नन्दा (पार्वती) की पूजा नैना देवी के रुप में की जाती है।
- मंदिर के प्रवेश द्वार पर पीपल का एक विशाल वृक्ष स्थित है, जिसके पीछे भी कई मान्यताएं हैं।
- मंदिर के प्रांगण में विभिन्न प्रकार के फुल लगे हुए है, जो मंदिर की सुन्दरता में चार-चाँद लगा देते है।
- इस मंदिर में आदर जाने के लिए कोई प्रवेश शुल्क नहीं देना पड़ता है और मंदिर के खुलने का समय सुबह 6:00 बजे से रात 10:00 बजे है।
- मंदिर में नंदाअष्टमी के दिन 8 दिन तक चलने वाले एक भव्य मेले का आयोजन किया जाता है। इस मेले में नंदा देवी की बहन नैनी देवी की मूर्ति का विसर्जन किया जाता है।
- इस मंदिर की यात्रा करने का सबसे उत्तम समय अप्रैल से जून और फिर नवंबर से जनवरी तक हैं।
- नैनीताल बस स्टैंड से मंदिर मात्र 2.5 कि.मी. की दूरी स्थित है, जहाँ से ऑटो या रिक्शे की सहायता से आसानी से मंदिर तक पंहुचा जा सकता है।