नालंदा विश्वविद्यालय संक्षिप्त जानकारी
स्थान | राजगीर, नालंदा के समीप, बिहार, भारत |
संस्थापक | कुमारगुप्त प्रथम |
स्थापना वर्ष | 450 ई॰ से 470 ई॰ मध्य |
प्रकार | ऐतिहासिक विश्वविद्यालय |
प्रथम खोजकर्ता | अलेक्जेंडर कनिंघम |
स्थान की खोज | 1812 ई॰ |
नालंदा विश्वविद्यालय का संक्षिप्त विवरण
नालंदा विश्वविद्यालय भारत के बिहार राज्य की राजधानी पटना के दक्षिण-पूर्व में 88.5 किलोमीटर और राजगीर से 11.5 किलोमीटर दूरी पर स्थित है यह विश्वविद्यालय प्राचीन भारत में उच्च शिक्षा का सर्वाधिक महत्वपूर्ण और विख्यात केंद्र माना जाता है। इस स्थान की खोज प्रसिद्ध विद्वान् और भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग के संस्थापक अलेक्जेंडर कनिंघम द्वारा की गई थी। वर्तमान में इस महान बौद्ध विश्वविद्यालय के अवशेष एक खँडहर के रूप में बचे हुए हैं। जिसके साथ ही इसे स्मारक के रूप में युनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल की सूची में जोड़ा गया है।
नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास
नालंदा विश्वविद्यालय का संस्थापक गुप्त राजवंश के राजा कुमारगुप्त प्रथम को माना जाता है उनके द्वारा विश्वविद्यालय की स्थापना 450 ई॰ से 470 ई॰ के मध्य की गई थी। जिसके बाद इस विश्वविद्यालय के उत्तराधिकारियों को हेमंत कुमार गुप्त द्वारा पूरा सहयोग मिला। परंतु गुप्तवंश के खत्म हो जाने के बाद भी कई शासकों द्वारा योगदान मिला। जिसमें वर्द्धन राजवंश के राजा हर्ष वर्द्धन और पाल शासक भी शामिल थे
स्थानीय शासकों के अतिरिक्त भारत के अलग-अलग क्षेत्रों से और विदेशी शासकों द्वारा भी नालंदा विश्वविद्यालय के उत्तराधिकारियों को सहायता मिलती रही थी। विश्वविद्यालय के अंत के बारे मे तिब्बती इतिहासकार तारानाथ के अनुसार तीर्थिकों और भिक्षुओं के आपसी झगड़ों से इस विश्वविद्यालय की गरिमा को बहुत नुकसान पहुँचा। वहीं इस पर पहला आक्रमण हुण शासक मिहिरकुल द्वारा किया गया जिसके बाद 1199 ई॰ में तुर्क आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी ने इसे जला कर पूर्णतः नष्ट कर दिया और समय के साथ-साथ इसका अस्तित्व ही मिट गया।
नालंदा विश्वविद्यालय के रोचक तथ्य
- नालंदा विश्वविद्यालय प्राचीन काल में एक बौद्ध विश्वविद्यालय था साथ ही उस समय एशिया में सबसे बड़ा स्नातकोत्तर शिक्षा का केन्द्र था और लगभग 700 वर्ष तक यहाँ बोद्ध धर्म के साथ-साथ अन्य धर्म ग्रंथो की शिक्षा भी दी जाती थी।
- संस्कृत में नालंदा का अर्थ “ज्ञान देने वाला” होता है जिसमें नालम् का अर्थ कमल से है, जो ज्ञान का प्रतीक है और "दा" का अर्थ देने वाला है।
- विश्वविद्यालय पूर्णतः विकसित स्थिति में था जिसमें लगभग 2000 अध्यापक और 20,000 विद्यार्थियों की संख्या थी।
- नालंदा विश्वविद्यालय में भारत के विभिन्न क्षेत्रों के साथ-साथ विदेशों से भी विध्यार्थी शिक्षा ग्रहण करने आते थे। जिसमें कोरिया, जापान, चीन, तिब्बत, इंडोनेशिया, फारस तथा तुर्की आदि देश सम्मिलित थे और सभी विध्यार्थी कई वर्ष तक शिक्षा प्राप्त करने के साथ-साथ कठोर जीवन बिताते थे।
- नालंदा विश्वविद्यालय में जब लगभग सातवीं शताब्दी में ह्वेनसांग यहाँ आए उस समय 20,000 विध्यार्थी और 1500 अध्यापक यहाँ उपस्थित थे। ह्वेन त्सांग ने यहाँ पाँच वर्षों तक रहकर शिक्षा ग्रहण की थी।
- नालंदा विश्वविद्यालय को नौवीं शताब्दी से बारहवीं शताब्दी तक अंतर्राष्ट्रीय प्रसिद्धि प्राप्त थी।
- भगवान बुद्ध के दो प्रमुख शिष्यों सरिपुत्र और मार्दगलापन का जन्म नालंदा में ही हुआ था। सरिपुत्र का देहांत नालंदा में उसी कमरे में हुआ था, जिसमें वह पैदा हुआ थे। उनकी मृत्यु का कमरा बहुत पवित्र माना जाने लगा और बौद्धों के लिए तीर्थ स्थान बन गया
- नालंदा विश्वविद्यालय में भोजन, कपड़े इत्यादि जैसी दैनिक जीवन की उपयोग वस्तुओं का प्रबंध कुलपति या प्रमुख आचार्य करते थे और यह सब विश्वविद्यालय को कन्नौज के राजा हर्षवर्धन द्वारा दान में मिले दो सौ गाँवों से प्राप्त उपज और आय द्वारा अर्जित किया जाता था।
- चीनी यात्री ह्वेनसांग के अनुसार विश्वविद्यालय के किसी भी विध्यार्थी और आचार्य को भिक्षा मांगने की आवश्यकता नहीं पड़ती थी। नालंदा विश्वविद्यालय में तीन श्रेणियों के आचार्य थे जो अपनी योग्यतानुसार प्रथम, द्वितीय और तृतीय श्रेणी में कार्यरत थे नालंदा के प्रसिद्ध आचार्यों में शीलभद्र, धर्मपाल, चंद्रपाल, गुणमति और स्थिरमति प्रमुख थे।
- 7 वीं सदी में ह्वेनसांग इस विश्वविद्यालय के प्रमुख कुलपतियों में से एक थे जो एक महान आचार्य, शिक्षक और विद्वान थे।
- नालंदा के अध्ययन क्षेत्र में महायान के प्रवर्तक नागार्जुन, वसुबन्धु, असंग तथा धर्मकीर्ति की रचनाओं का विस्तार पूर्वक अध्ययन होता था। जिसके साथ वेद, वेदांत और सांख्य भी पढ़ाये जाते थे और ज्योतिष, व्याकरण, चिकित्साशास्त्र, योगशास्त्र तथा शल्यविद्या, भी निर्धारित विषय एवं उनकी पुस्तकें के अन्तर्गत आते थे।
- नालंदा की खुदाई में मिली अनेक काँसे की मूर्तियो के आधार पर कुछ इतिहासकारो का मानना है कि धातु की मूर्तियाँ बनाने के विज्ञान का भी यहाँ अध्ययन होता रहा होगा इसलिए खगोलशास्त्र अध्ययन के लिए यहाँ एक विशेष विभाग था।
- नालंदा में विद्यार्थियों और आचार्यों के अध्ययन के लिए एक विशाल पुस्तकालय भी था जिसमें 3 से अधिक पुस्तकें उपलब्ध थीं और सभी विषयों से संबंधित पुस्तकें थी यह 'रत्नरंजक' 'रत्नोदधि' 'रत्नसागर' नामक तीन विशाल भवनों में स्थित था।
- नालंदा विश्वविद्यालय के अवशेष लगभग 34 एकड़ के क्षेत्र में दक्षिण से उत्तर दिशा में फैला हुआ था और विश्वविद्यालय की इमारतों का निर्माण लाल पत्थर से किया गया था जिसमें पश्चिमी दिशा में चैत्य मंदिर और पूर्वी दिशा में मठ बने हुए हैं।
- विश्वविद्यालय परिसर में एक छोटा सा पुरातात्विक संग्रहालय बना हुआ है इस संग्रहालय में खुदाई से प्राप्त अवशेषों को रखा गया है। जिसमें भगवान बुद्ध की विभिन्न प्रकार की मूर्तियां, बुद्ध की टेराकोटा मूर्तियां और प्रथम शताब्दी के दो मर्तबान भी इस संग्रहालय में शामिल हैं इसके अतिरिक्त संग्रहालय में तांबे की प्लेट, सिक्के, बर्त्तन, पत्थर पर खुदे अभिलेख, इत्यादि वस्तुएं राखी हुईं हैं
- नालंदा विश्वविद्यालय परिसर यहाँ कई स्मारक हैं जिनमें नव नालंदा महाविहार, ह्वेनत्सांग मेमोरियल हॉल, बड़गांव, सिलाव राजगीर शामिल हैं।
- भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा इसे पुरावशेष प्राचीन स्मारक एवं पुरातात्विक स्थल घोषित कर दिया है और यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल की सूची जोड़ दिया गया है। साथ ही युनेस्को अधिकारियों के द्वारा नालंदा में स्थित मंदिर संख्या तीन का निर्माण पंचरत्न स्थापत्य कला से किया गया है। और भारत सरकार के पर्यटन मंत्रालय ने इसे भारत के सात आश्चर्य के रूप में चुना है।
नालंदा विश्वविद्यालय कैसे पहुँचे
- विश्वविद्यालय से 89 किलोमीटर दूर निकटतम हवाई अड्डा पटना का जयप्रकाश नारायण हवाई अड्डा है।
- इसके अतिरिक सबसे प्रमुख और निकटतम रेलवे स्टेशन राजगीर रेलवे स्टेशन है। यह नालंदा विश्वविद्यालय से केवल 13 किमी की दूरी पर स्थित है।
- इसके अलावा नालंदा अच्छी सड़क द्वारा राजगीर से 12 किमी, बोधगया से 110 किमी, गया से 95 किमी, पटना से 90 किमी, पवापुरी से 26 किमी, और बिहार से 13 किमी आदि से जुड़ा हुआ है।