रणथंभौर का किला संक्षिप्त जानकारी
स्थान | सवाई माधोपुर, राजस्थान (भारत) |
निर्माण | 944 ई. |
निर्माता | चौहान राजा रणथंबन देव |
प्रकार | किला |
रणथंभौर का किला का संक्षिप्त विवरण
शक्तिशाली रणथंभौर किला भारतीय राज्य राजस्थान के प्रमुख शहर सवाई माधोपुर के पास रणथंबोर राष्ट्रीय उद्यान के भीतर स्थित है। 'रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान' उत्तर भारत में सबसे बड़ा वन्यजीव संरक्षण स्थल है। वर्ष 1955 में यह वन्यजीव अभयारण्य के रूप में स्थापित किया गया था। इस किले से जयपुर की दूरी करीब 178 किलोमीटर है।
पठार पर बना यह किला भारत के प्राचीन ऐतिहासिक एवं सामरिक महत्त्व के दुर्गों (किलो) में अपना विशेष स्थान रखता है। अपनी प्राकृतिक बनावट के कारण इस किले ने काफ़ी प्रसिद्धि प्राप्त की है। इस दुर्ग के प्राचीर से काफ़ी दूर तक दुश्मनों पर नजर रखी जा सकती थी।
यह क़िला चारों तरफ से घने वनों से आच्छादित चम्बल की घाटी पर नियंत्रण रखता था। वर्तमान में वन्यजीव अभ्यारण (वाइल्ड लाइफ सेंचुरी) बने चुका रणथंभोर का जंगल पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है। यह राजस्थान के सबसे प्रसिद्ध महत्वपूर्ण पर्यटन स्थलों में से एक है।
रणथंभौर का किला का इतिहास
इस किले का निर्माण कब हुआ था इसके साक्ष्य उपलब्ध नहीं है, लेकिन इतिहासकारो के अनुसार रणथंभौर किले का निर्माण चौहान राजा रणथंबन देव द्वारा 944 ई. में किया गया था। इस किले का अधिकांश निर्माण कार्य चौहान राजाओं के शासन काल में ही हुआ है। दिल्ली के सम्राट पृथ्वीराज चौहान के समय भी यह किला मौजूद था और चौहानों के ही नियंत्रण में था। इस ऐतिहासिक इमारत पर 1528 के दौरान मुगलों का आधिपत्य था, जिसके बाद में 17वीं शताब्दी में मुगलों ने यह किला जयपुर के महाराजा को उपहार स्वरूप भेंट कर दिया।
रणथंभौर का किला के रोचक तथ्य
- विंध्य पठार और अरावली पहाड़ियों के बीच बना यह किला आसपास के मैदानों से करीब 700 फुट की ऊंचाई के ऊपर पर है और लगभग 7 कि.मी. के भौगोलिक क्षेत्र में फैला हुआ है।
- किले के तीनो ओर पहाडों में प्राकृतिक खाई बनी है, जो इसकी सुरक्षा को मजबूत कर अजेय बनाती है।
- इस किले पर अपना आधिपत्य ज़माने के लिए इतिहास में काफी बार आक्रमण हुए थे, साल 1209 मे मुहम्मद गौरी व चौहानो के बीच इस दुर्ग की प्रभुसत्ता के लिए भीषण युद्ध हुआ था। इसके बाद 1226 मे इल्तुतमीश, 1236 मे रजिया सुल्तान, 1248-58 मे बलबन, 1290-1292 मे जलालुद्दीन खिल्जी, 1301 मे अलाऊद्दीन खिलजी, 1325 मे फिऱोजशाह तुगलक, 1489 मे मालवा के मुहम्म्द खिलजी, 1429 मे महाराणा कुम्भा, 1530 मे गुजरात के बहादुर शाह और साल 1543 मे शेरशाह सुरी द्वारा आक्रमण किया गया था।
- साल 1569 मे अकबर ने आक्रमण कर इस किले पर आमेर के राजाओ के माध्यम से तत्कालीन शासक राव सुरजन हाड़ा से सन्धि कर ली।
- इस दुर्ग का जीर्णोद्धार जयपुर के राजा पृथ्वी सिंह और सवाई जगत सिंह ने कराया। महाराजा मान सिंह ने इस दुर्ग को शिकारगाह के रुप मे परिवर्तित कराया।
- आजादी के बाद यह किला राज्य सरकार के अधीन आ गया, जो साल 1964 से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के नियंत्रण में है।
- किले के आसपास विभिन्न जल निकायों उपस्थित होने के कारण यहाँ पर आवासीय और प्रवासी पक्षियों की एक बड़ी विविधता देखी जा सकती है।
- किले के अंदर गणेश शिव और रामलाजी को समर्पित तीन हिंदू मंदिर भी बने हुए है।
- यहां की एक पहाड़ी पर राजा हम्मीर के घोड़े के पद चिन्ह आज भी छपे हुए हैं, ऐसा माना जाता है कि राजा को लेकर घोड़े ने मात्र तीन छलांग में ही पूरी पहाड़ी को पार कर लिया था।
- किले के अन्दर बना त्रिनेत्र गणेश का मंदिर काफी प्रसिद्ध है, यहाँ भाद्रपद के महीने में गणेश चतुर्थी का 5 दिवसीय विशाल मेले का आयोजन किया जाता है। जहां पूरे साल दूर-दूर से भक्तों का अवागमन लगा रहता है।
- किले का मुख्य आकर्षण हम्मीर महल है जो देश के सबसे प्राचीन राजप्रसादों में से एक है, इसके अलावा राणा सांगा की रानी कर्मवती द्वारा शुरू की गई अधूरी छतरी भी अत्यंत दर्शनीय है।
- वर्तमान में क़िले में मौजूद नौलखा दरवाज़ा, दिल्ली दरवाज़ा, तोरणद्वार, हम्मीर के पिता जेतसिंह की छतरी, पुष्पवाटिका, गणेश मन्दिर, गुप्तगंगा, बादल महल, हम्मीर कचहरी, जैन मन्दिर आदि का अपना ही ऐतिहासिक महत्त्व है।
- यूनेस्को द्वारा 21 जून 2013 को रणथंभोर किले को विश्व धरोहर स्थल के रूप घोषित किया गया था।
- रणथंभौर किले का प्रवेश शुल्क भारतीय नागरिको के लिए 25 रूपए, छात्रों के लिए 10 रूपए और विदेशी नागरिको के लिए 200 रूपए है। यह किला सैलानियों के लिए सुबह 6 बजे से शाम 6 बजे तक खुलता है।