स्टेचू ऑफ़ लिबर्टी संक्षिप्त जानकारी
स्थान | मैनहट्टन, न्यूयॉर्क सिटी (संयुक्त राज्य अमेरिका) |
निर्माणकाल | 1875 से 1886 ई. |
निर्माता (किसने बनवाया) | फ्रांस |
वास्तुकार | गुस्ताव एफ़िल, रिचर्ड मॉरिस हंट, फ्रेड्रिक ऑगस्टे बार्थोल्डी |
प्रकार | सांस्कृतिक, मूर्ति |
स्टेचू ऑफ़ लिबर्टी का संक्षिप्त विवरण
विश्व में कई ऐतिहासिक व रोचक मूर्तियाँ है, परंतु संयुक्त राज्य अमेरिका के राज्य न्यूयॉर्क सिटी के एक प्रांत मैनहेटन में स्थित स्टेचू ऑफ़ लिबर्टी की तांबे की मूर्ति जैसी शायद ही विश्व में कंही कोई दूसरी मूर्ति होगी। इस मूर्ति को यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर की सूची में भी सम्मिलित किया जा चुका है।
स्टेचू ऑफ़ लिबर्टी का इतिहास
इस ऐतिहासिक मूर्ति का इतिहास अमेरिका और फ्रांस से जुड़ा हुआ है। अमेरिकी क्रांति के दौरान फ्रांस ने संयुक्त राज्य अमेरिका की सहायता की थी जिसके बाद से दोनों देशो के संबंध और भी मधुर हो चुके थे। दोनों देशों ने 1865 में समान राजनीतिक विचारों और परिस्थितियों को साझा किया था।
इसके बाद एडौर्ड रेन लैबौलाय (Edouard Rene Laboulaye) ने फ्रांस को सुझाव दिया कि उसे संयुक्त राज्य अमेरिका को उनकी दोस्ती का एक प्रतीक प्रदान करना चाहिए, जिसके बाद फ्रांस ने फ्रांसीसी मूर्तिकार फ्रेडरिक बार्थोल्दी को मूर्ति बनाने के लिए औए फ्रांसीसी इंजीनियर गुस्ताव एफ़िल को उनका सहयोग करने के लिए नियुक्त किया।
उन्होंने एक स्टील के ढांचे को ढंकते हुए पतली गोल तांबे की चादरों का उपयोग करके भारी संरचना तैयार की। गुस्ताव एफ़िल ने ही पेरिस के एफिल टॉवर का निर्माण किया था, उन्होंने ही इस मूर्ति के फ्रेम को भी बनाया था। इसके डिजाइन और निर्माण को 19वीं शताब्दी के इंजीनियरिंग का एक उत्कृष्ट नमूना माना जाता था।
अमेरिकी वास्तुकार रिचर्ड मॉरिस हंट ने मूर्ति के पैडस्टल को डिजाइन किया था। इस मूर्ति के अधिकतर भागो को 1884 तक पूरा कर लिया गया था जिन्हें बाद में फ्रांसीसी युद्धपोत "इसेरे" की सहायता से अमेरिका पंहुचाया गया था। इस युद्धपोत ने मूर्तियों को 350 भागों में पहुंचाया था, जिन्हें 214 क्रेट्स में पैक किया गया। इस मूर्ति को अमेरिका में 28 अक्टूबर 1886 तक बनाकर सामान्य लोगो के लिए खोल दिया गया था। इस मूर्ति को अमेरिका और फ्रांस की मित्रता को समर्पित किया गया था।
स्टेचू ऑफ़ लिबर्टी के रोचक तथ्य
- स्टेचू ऑफ़ लिबर्टी का वास्तविक नाम “लिबर्टी इनलाइटिंग द वर्ल्ड” है, यह मूर्ति फ्रांस 1886 में अमेरिका को उपहार के रूप में दी गई थी।
- इस मूर्ति की कुल ऊंचाई लगभग 305 फुट 1 इंच है, जोकि किसी 22 मंजिला ऊँची इमारत के समान है।
- इसके ताज पर 7 कीले हैं, जो दुनिया के 7 महाद्वीपों और महासागरो का प्रतिनिधित्व करती हैं, प्रत्येक कील की लंबाई लगभग 9 फीट है।
- इस मूर्ति का कुल भार लगभग 225 टन है, जिस कारण यह विश्व की सबसे भारी मूर्तियों में गिनी जाती है।
- इस स्वतंत्रता के प्रतीक वाली मूर्ति के हाथ में जो पुस्तक है उसकी लंबाई लगभग 23 फुट 7 इंच और चौड़ाई लगभग 13 फुट 7 इंच है, इस पुस्तक पर रोमन में अमेरिका की स्वतंत्रता की तिथि JULY IV MDCCLXXVI (4 जुलाई 1776) लिखी हुई है।
- इस मूर्ति को दुनिया के सामने सार्वजनिक तौर पर 28 अक्टूबर 1886 को खोला गया था, परंतु इसका सिर 1878 में पेरिस में हुये एक विश्व मेले में ही दिखा दिया गया था।
- इस मूर्ति का निर्माण कार्य 1875 में शुरू हुआ और लगभग 12 वर्षो के बाद यह मूर्ति 1886 में बनकर तैयार हो गई थी।
- इस मूर्ति के निर्माण में लगभग 5 लाख डॉलर का खर्चा आया था, जो वर्ष 1886 में सबसे अधिक लागतो में से एक थी।
- इस मूर्ति का पहला हिस्सा इसकी मशाल है जिसका निर्माण लगभग 1876 में किया गया था परंतु दुर्भाग्यवश 1916 में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जर्मन सैनिकों द्वारा इस मूर्ति के क्षेत्र की गई बमबारी के कारण इसकी मशाल को नुकसान हुआ और उसके निर्माण में लगभग 1 लाख डॉलर का खर्च आया था।
- इस मूर्ति को जिस टापू पर बनाया गया है उस टापू को वर्ष 1956 से पहले बेद्लोए आइलैंड के नाम से जाना जाता था, परंतु 1956 में उसके नाम को बदलकर लिबर्टी आइलैंड कर दिया गया था।
- वर्ष 1984 में इस मूर्ति की पुरानी मशाल को हटाकर नई शुद्ध 24 कैरेट सोने के पत्तों की पतली चादर से ढकी तांबे की नई मशाल को लगा दिया गया था।
- वर्ष 1984 में इस मूर्ति के ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और कला के महत्व को ध्यान में रखते हुए इसे यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर की सूची में सम्मिलित कर लिया गया था।
- इस मूर्ति पर प्रत्येक वर्ष लगभग 300 से अधिक बार बिजली गिरती है, इस पर बिजली गिरते हुए की फ़ोटो को पहली बार 2010 में खींचा गया था।
- इस मूर्ति के शीर्ष यानी इसके ताज तक जाने के लिए इसमें लगभग 354 घुमावदार सीढियाँ बनाई गई हैं।
- इस मूर्ति के शीर्ष यानी इसके ताज में लगभग 25 खिड़कियाँ बनी हुई है, जिस कारण इसे देखने प्रत्येक वर्ष लगभग 32 लाख लोग आते है।