तारागढ़ किला संक्षिप्त जानकारी
स्थान | अजमेर, राजस्थान (भारत) |
निर्माण | 11वीं शताब्दी |
निर्माता | सम्राट अजय पाल चौहान |
प्रकार | किला |
तारागढ़ किला का संक्षिप्त विवरण
एशिया महाद्वीप में स्थित भारत की पावन भूमि पर प्राचीनकाल में कई वीर राजाओ ने शासन किया और अपनी वीरता की निशानी के रूप कुछ पहचान छोड़ गये है, उन्हीं मे से एक है तारागढ़ का किला। तारागढ़ किले को स्टार किले के नाम से भी जाना जाता है। तारागढ़ का किला (बूंदी का किला) भारतीय राज्य राजस्थान के अजमेर में अरावली की ऊंची पहाड़ियों पर बना एक शानदार किला है।
राजस्थान संस्कृतिक परम्परा एवं लोक कला के लिए प्रचलित है। भारत में ऐसे कई किले, उद्यान और स्थान हैं, जिन्हें यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत स्थल के रूप में भी चुना गया है। यह किला गिरी दुर्ग का उत्कृष्ट उदाहरण है।
तारागढ़ किला का इतिहास
भारतीय राज्य राजस्थान के अजमेर में स्थित तारागढ़ किले का इतिहास अजमेर के चौहान शासको से जुड़ा हुआ है। इस ऐतिहासिक किले का निर्माण 11वीं शताब्दी में सम्राट अजय पाल चौहान द्वारा करवाया गया था। इस दुर्ग का निर्माण विदेशी या तुर्को के आक्रमणों से रक्षा तथा अपनी सैन्य गतिविधियों को सुचारू रूप से चलाने के लिए किया गया था।
इस प्राचीन किलें ने कई राजाओ का उत्थान और पतन देखा है, इस किलें की एक रोचक बात यह है कि कुछ समय पहले तक इस किले को राजस्थान पर्यटन की वेवसाइट पर दर्शाया नही गया था, क्योंकि तारागढ़ के नाम से बूंदी स्थित किले को ही जाना जाता था, लेकिन अजमेर स्थित तारागढ़ किला उससे कही ज्यादा भव्य, विशाल और प्राचीन है। मुग़ल काल में यह क़िला सामरिक दृष्टिकोण से काफ़ी महत्त्वपूर्ण था, लेकिन अब इस किले में सिर्फ़ जर्जर बुर्ज, दरवाज़े और खँडहर ही शेष बचे हैं।
तारागढ़ किला के रोचक तथ्य
- यह किला समुद्रतल से लगभग 1 हजार 885 फीट ऊंचे पर्वत शिखर पर दो वर्ग मील में फैला हुआ है और भारत के सबसे ऊंचाई पर बने किलों में से एक है।
- पहाड़ी की खड़ी ढलान पर बने इस ऐतिहासिक किले में अन्दर जाने के लिए 3 विशाल दरवाजे बने हुए हैं। इन्हें लक्ष्मी पोल, फूटा दरवाजा और गागुड़ी का फाटक के नाम से जाना जाता है।
- यह किला ठेठ राजपूती स्थापत्य शैली में बना हुआ है, इस दुर्ग पर राजस्थान के अन्य किलों की तुलना में मुगल स्थापत्य कला का कोई खास प्रभाव दिखाई नहीं पड़ता है।
- इस प्राचीन क़िले में एक प्रसिद्ध दरगाह और 7 पानी के झालरे भी बने हुए हैं।
- मेवाड़ के एक शासक पृथ्वीराज सिसोदिया ने अपनी पत्नी "तारा" के कहने पर इस किले का पुनः निर्माण करवाया था, जिसके कारण यह तारागढ़ के नाम से प्रसिद्ध है।
- जब सन् 1832 में भारत के गवर्नर जनरल विलियम बैंटिक ने इस किले को देखा तो उनके मुंह से निकल पड़ा- ''ओह दुनिया का दूसरा जिब्राल्टर''। जिब्राल्टर यूरोप के दक्षिणी छोर पर भूमध्य सागर के किनारे स्थित एक स्वशासी ब्रिटिश विदेशी क्षेत्र है। जिब्राल्टर चट्टानी प्रायद्वीप से घिरा हुआ है। यहां कई प्राकृतिक गुफाएं भी हैं।
- किले की भीम बुर्ज पर एक "गर्भ गुंजन" तोप भी रखी हुई है, जो अपने विशाल आकार और मारकक्षमता से शत्रुओं के छक्के छुड़ाने का कार्य करती थी। यह तोप आज भी यहां देखी जा सकती है, लेकिन वर्तमान में यह सिर्फ प्रदर्शन की वस्तु बनकर रह गई है। कहा जाता है जब यह तोप चलती थी तब इसकी तेज आवाज का शोर चारों ओर सुनाई देता था। 16वीं सदी में यह तोप कई मर्तबा गूंजी थी।
- इस किले के भीतर 14 विशाल बुर्ज, अनेक जलाशय और मुस्लिम संत मीरान् साहब की दरगाह बनी हुई है।
- इस किले में पानी के तीन तलाब भी हैं, जो कभी नहीं सूखते। इन तालाबों का निर्माण इंजीनियरिंग के परिष्कृत और उन्नत विधि का एक शानदार उदाहरण है, जिनका प्रयोग उन दिनों में हुआ था। इन जलाशयों में वर्षा का जल सिंचित रखा जाता था और पानी की समस्या उत्पन्न होने पर आम निवासियों की जरूरत के लिए पानी का इस्तेमाल किया जाता था। जलाशयों का आधार चट्टानी होने के कारण यहां पर पानी वर्ष भर जमा रहता था।
- किले में एक मीठे नीम का पेड़ भी है। ऐसा माना जाता है कि जिन औरतों को संतान प्राप्ति का सुख नहीं मिलता है, यदि वो इस वृक्ष का फल खा लें, तो उन्हें संतान की प्राप्ति हो जाती है।
- कोटा जाने वाले मार्ग पर देवपुरा ग्राम के निकट एक विशाल छतरी बनी हुई है। इस छतरी का निर्माण राव राजा अनिरूद्ध सिंह के धाबाई देवा के लिए 1683 में किया। इस तीन मंजीला छतरी में 84 भव्य स्तंभ हैं।
- इस किले के भीतर बने महल अपनी स्थापत्यकला एंव अद्भुत चित्रकारी के कारण अद्वितिय है। इन महलों में छत्रमहल, अनिरूद्ध महल, रतन महल, बादल महल और फुल महल प्रमुख है।