फूलों की घाटी संक्षिप्त जानकारी
स्थान | चमोली जिला, उत्तराखंड (भारत) |
प्रकार | राष्ट्रीय उद्यान |
समुद्र तल से ऊंचाई | 3352 से 3658 मीटर |
खोजकर्ता | कर्नल एडमंड |
वर्ष | 1862 ई॰ |
यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल | 1988 ई॰ |
खुलने का समय | जून से अक्टूबर बीच |
फूलों की घाटी का संक्षिप्त विवरण
भारतीय राज्य उत्तराखंड में स्थित फूलों की घाटी अपने फूलों, हरियाली और स्वच्छ वातावरण के लिए विश्व विख्यात है। उत्तराखंड भारत के सबसे सुंदर राज्यों में से एक है, यह एक ऐसा राज्य है जो न केवल आस्था की दृष्टि अपितु पर्यटन की दृष्टि से भी पर्यटकों को अपनी और आकर्षित करता है। फूलों की घाटी पश्चिम हिमालय क्षेत्र में नन्दा देवी राष्ट्रीय उद्यान का ही एक भाग है।
फूलों की घाटी का इतिहास
इसकी अगम्यता के कारण बाहरी दुनिया को इस जगह की कम जानकारी थी। वर्ष 1931 में फ्रैंक एस. स्माइथ, एरिक शिपटन और आर.एल. होल्ड्सवर्थ नाम कुछ ब्रिटिश पर्वतारोहियों ने माउंट कैमेट के सफल अभियान से लौटने के दौरान अपना रास्ता खो दिया था और वे ऐसी घाटी में पंहुचे जो फूलों से भरी हुई थी।
वे इस क्षेत्र की सुंदरता की ओर आकर्षित हुए और इसे "वैली ऑफ़ फ्लावर" (फूलों की घाटी) का नाम दे दिया। बाद में फ्रैंक स्माइथ ने उसी शीर्षक के नाम पर एक पुस्तक भी लिख दी थी।
वर्ष 1939 में रॉयल बोटेनिक गार्डन केयू द्वारा नियुक्त एक वनस्पतिविद “जोन मार्गरेट लीज” को इस घाटी के फूलों का अध्ययन करने के लिए वहाँ भेजा गया था, परंतु रास्ते में कुछ चट्टानी ढलानों से फूल इकट्ठा करते समय वह फिसल गई और उनकी वंही मृत्यु हो गई थी। बाद में उनकी बहन ने उस घाटी का दौरा किया और वहाँ एक स्मारक बनवाया।
वन्यजीव संस्थान द्वारा नियुक्त एक वनस्पति विज्ञान के प्रोफेसर चंद्र प्रकाश काला ने वर्ष 1993 से घाटी के फूलों और उनके संरक्षण पर गहन अध्ययन किया। इस घाटी की सुंदरता वर्तमान में भी वैसी ही जैसे यह पहले थी।
फूलों की घाटी के रोचक तथ्य
- यह घाटी लगभग 87.50 वर्ग कि.मी. के क्षेत्रफल में फैली हुई है, जो लगभग 2 कि.मी. चौड़ी और लगभग 8 कि.मी. लंबी है।
- यह घाटी समुद्रतल से लगभग 3352 से 3658 मीटर की ऊंचाई पर स्थित नन्दा देवी राष्ट्रीय उद्यान का ही एक हिस्सा है।
- वर्ष 1862 ई.पुष्पावती घाटी को कर्नल एडमंड स्माइथ ने खोजा था।
- वर्ष 1931 में इस घाटी में खो गये पर्वतारोही फ्रैंक एस. स्माइथ ने बाद में इस घाटी के ऊपर एक "वैली ऑफ़ फ्लावर" नामक प्रचलित पुस्तक लिखी थी।
- भारत सरकार द्वारा वर्ष 1982 में इस घाटी को भारतीय राष्ट्रीय उद्यान के रूप में मान्यता प्रदान की गई थी।
- वर्ष 1988 में यूनेस्को ने इस घाटी की अद्भुत सुंदरता, स्व्च्छ वातावरण को ध्यान में रखते हुए इसे विश्व धरोहर स्थल की सूची में सम्मिलित कर लिया था।
- भारतीय वन अनुसंधान संस्थान ने वर्ष 1992 में इस घाटी के आसपास लगभग 600 से अधिक एंजियोस्पर्म (Angiosperms) की प्रजातियों वाले पौधे पाए और लगभग 30 पटरिडॉफेट्स (Pteridophytes) प्रजातियों वाले पौधों की पहचान की गई है।
- इस घाटी में लगभग 300 से अधिक प्रजातियो के रंगबिरंगे सुंदर पुष्प पाए जाते है
- इस घाटी में प्रमुख रूप से पाए जाने वाले पुष्पो में मुख्य रूप से एनीमोन, जर्मेनियम, मार्श, गेंदा, प्रिभुला, पोटेन्टिला, जिउम, तारक, लिलियम, हिमालयी नीला पोस्त, बछनाग, डेलफिनियम, रानुनकुलस, कोरिडालिस, इन्डुला, सौसुरिया, कम्पानुला, पेडिक्युलरिस, मोरिना, इम्पेटिनस, बिस्टोरटा, लिगुलारिया, अनाफलिस, सैक्सिफागा, लोबिलिया, थर्मोपसिस, ट्रौलियस, एक्युलेगिया, कोडोनोपसिस, डैक्टाइलोरहिज्म, साइप्रिपेडियम, स्ट्राबेरी एवं रोडोडियोड्रान इत्यादि शामिल है।
- इस घाटी में 15 जुलाई से 15 अगस्त तक यहाँ पर अत्यधिक मात्रा में पुष्प उगते है जिसे देखकर ऐसा लगता होता है जैसे किसी ने वहाँ पर रंगोली का निर्माण किया हो।
- पार्क उत्तराखंड राज्य वन विभाग, पर्यावरण विभाग और वन मंत्रालय, भारत द्वारा प्रशासित है और यह जून से अक्टूबर तक केवल गर्मियों के दौरान खुला रहता है इसके अतिरिक्त वर्ष के बाकी महीनों में यह भारी वर्ष से ढाका रहता है।
- वर्ष 1992 में और 1997 में भारतीय वन्यजीव संस्थान द्वारा फूलों का सर्वेक्षण और आविष्कार किया गया था और 1997 ई॰ में भारतीय वन्यजीव संस्थान ने विज्ञान के लिए फूलों की नई पांच प्रजातियों का आविष्कार किया था।
- वैली ऑफ फ्लॉवर्स में से 45 औषधीय पौधों का उपयोग स्थानीय ग्रामीणों और द्वारा किया जाता है जिसमें सौसुरिया ओब्वाल्ता (ब्रह्मकमल), नंदा देवी इत्यादि जिसके साथ ही सुनंदा देवी पौधे को धार्मिक प्रसाद के रूप में उपयोग किया जाता है।