गुप्त राजवंश का इतिहास, शासकों का नाम एवं महत्वपूर्ण तथ्य:
गुप्त राजवंश:
गुप्त राजवंश या गुप्त वंश प्राचीन भारत के प्रमुख राजवंशों में से एक था। इसे भारत का एक स्वर्ण युग माना जाता है। मौर्य वंश के पतन के बाद दीर्घकाल तक भारत में राजनीतिक एकता स्थापित नहीं रही। कुषाण एवं सातवाहनों ने राजनीतिक एकता लाने का प्रयास किया। मौर्योत्तर काल के उपरान्त तीसरी शताब्दी इ. में तीन राजवंशो का उदय हुआ जिसमें मध्य भारत में नाग शक्ति, दक्षिण में बाकाटक तथा पूर्वी में गुप्त वंश प्रमुख हैं। मौर्य वंश के पतन के पश्चात नष्ट हुई राजनीतिक एकता को पुनस्थापित करने का श्रेय गुप्त वंश को है।
गुप्त राजवंशों का इतिहास:
गुप्त वंश 275 ई. के आसपास अस्तित्व में आया। इसकी स्थापना श्रीगुप्त ने की थी। लगभग 510 ई. तक यह वंश शासन में रहा। आरम्भ में इनका शासन केवल मगध पर था, पर बाद में गुप्त वंश के राजाओं ने संपूर्ण उत्तर भारत को अपने अधीन करके दक्षिण में कांजीवरम के राजा से भी अपनी अधीनता स्वीकार कराई। गुप्त साम्राज्य की नींव तीसरी शताब्दी के चौथे दशक में तथा उत्थान चौथी शताब्दी की शुरुआत में हुआ।
गुप्त वंश का प्रारम्भिक राज्य आधुनिक उत्तर प्रदेश और बिहार में था। इस वंश में अनेक प्रतापी राजा हुए। कालिदास के संरक्षक सम्राट चन्द्रगुप्त द्वितीय (380-413 ई.) इसी वंश के थे।
साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र में इस अवधि का योगदान आज भी सम्मानपूर्वक स्मरण किया जाता है। कालिदास इसी युग की देन हैं। अमरकोश, रामायण, महाभारत, मनुस्मृति तथा अनेक पुराणों का वर्तमान रूप इसी काल की उपलब्धि है।गुप्त राजवंश के शासक एवं शासन अवधि:
गुप्त राजवंश के शासकों का नाम | शासन अवधि |
श्रीगुप्त | 240-280 ई. |
घटोत्कच | 280-319 ई. |
चंद्रगुप्त प्रथम | 319-335 ई. |
समुद्रगुप्त | 335-375 ई. |
रामगुप्त | 375 ई. |
चंद्रगुप्त द्वितीय | 380-413 ई. |
कुमारगुप्त प्रथम महेन्द्रादित्य | 415-454 ई. |
स्कन्दगुप्त | 455-467 ई. |
नरसिंहगुप्त बालादित्य | 467-473 ई. |
कुमारगुप्त द्वितीय | 473-476 ई. |
बुद्धगुप्त | 476-495 ई. |
भारतीय इतिहास के गुप्तकालीन शासक और उनके अभिलेख:
गुप्त सम्राटों के समय में गणतंत्रीय राजव्यवस्था का ह्मस हुआ। गुप्त प्रशासन राजतंत्रात्मक व्यवस्था पर आधारित था। देवत्व का सिद्वान्त गुप्तकालीन शासकों में प्रचलित था। राजपद वंशानुगत सिद्धान्त पर आधारित था। राजा अपने बड़े पुत्र को युवराज घोषित करता था। उसने उत्कर्ष के समय में गुप्त साम्राज्य उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में विंघ्यपर्वत तक एवं पूर्व में बंगाल की खाड़ी से लेकर पश्चिम में सौराष्ट्र तक फैला हुआ था।
भारतीय इतिहास के गुप्तकालीन शासक और उनके अभिलेखों की सूची:
शासक का नाम | सम्बंधित अभिलेख |
समुद्रगुप्त (335-375ई) | प्रयाग प्रशस्ति, एरण प्रशस्ति, नालंदा, गया ताम्र शासन लेख। |
चन्द्रगुप्त द्वितीय (380-414ई) | मथुरा स्तंभलेख, उदयगिरी का प्रथम और द्वितीय गुहा लेख, गढ़वा का प्रथम शिलालेख, साँची शिलालेख, महरौली प्रशस्ति। |
कुमारगुप्त महेन्द्रादित्य (415-455ई) | बिल्सड़ स्तंभलेख, गढ़वा का द्वितीय शिलालेख, गढ़वा का तृतीय शिलालेख, उदयगिरी का तृतीय गुहलेख, धनदैह अभिलेख, मथुरा का जैन मूर्ति लेख, तुमैन शिलालेख, मंदसौर शिलालेख, कर्मदंडा लिंगलेख, कुलाईकुरी ताम्रलेख, दामोदरपुर प्रथम एवं द्वितीय ताम्रलेख, बैग्राम ताम्रलेख, मानकुंवर बुद्धमूर्ति लेख। |
स्कंदगुप्त | जूनागढ़ प्रशस्ति, कहाँव स्तम्भ लेख, सुपिया स्तंभलेख, इंदौर ताम्रलेख, भितरी स्तम्भलेख। |
कुमारगुप्त द्वितीय | सारनाथ बुद्धमूर्ति लेख। |
पुरुगुप्त | बिहार स्तम्भ लेख। |
बुद्धगुप्त | सारनाथ बुद्धमूर्ति लेख, पहाडपुर ताम्रलेख, राजघाट (वाराणसी), स्तम्भ लेख, नंदपुर ताम्रलेख। |
वैन्यगुप्त | गुनईधर (टिपरा) ताम्रलेख। |
भानुगुप्त | एरण स्तंभलेख। |
विष्णुगुप्त | पंचम दामोदरगुप्त ताम्र लेख। |
गुप्त राजवंश के बारे में महत्वपूर्ण सामान्य ज्ञान तथ्य:
- गुप्त वंश की स्थापना श्रीगुप्त ने की थी।
- श्री गुुप्त ने मगध के मृग शिखातन में एक मंदिर का निर्माण करवाया था।
- श्री गुुप्त ने महाराज की उपाधि हासिल की थी।
- श्री गुप्त ने धटोत्कच्च काेे अपना उत्तराधिकरी बनाया था।
- धटोत्कच ने अपने उत्तराधिकरी के रूप मेंं चन्द्रगुप्त प्रथम को गद्दी पर बिठाया था।
- गुप्त वंश का सबसे महान सम्राट चन्द्रगुप्त प्रथम था।
- इसने महाराजाधिराज की उपाधि धारण की थी।
- चन्द्रगुप्त प्रथम ने लच्छवी कुल की कन्या कुमारदेवी से शादी की थी।
- चन्द्रगुप्त प्रथम ने अपने उत्तराधिकारी के रूप में अपने पुत्र समुद्रगुप्त को राजगद्दी पर बिठाया अौर सन्यास ग्रहण कर लिया था।
- समुद्रगुप्त 335ई० में राजगद्दी पर बैठा था।
- समुद्रगुप्त विष्णु का उपासक था।
- समुद्रगुप्त ने अश्वमेघकर्ता की उपाधि धारण की थी।
- समुद्रगुप्त संंगीत का बहुत प्रेमी था।
- गुप्त कालीन सिक्कों में समुद्रगुप्त काे वीणा वादन करते हुऐ दिखाया गया है।
- श्री लंका के राजा मेघवर्मन ने कुछ उपहार भेज कर समुद्रगुप्त से गया में बौद्ध मंदिर बनबाने की अनुमति मॉगी थी।
- भारतीय इतिहास में समुद्रगुप्त काेे भारत का नेपोलियन भी कहा जाता है।
- समुद्रगुप्त को कविराज भी कहा जाता है।
- समु्द्रगुप्त ने 355 ई० से 375 ई० राज किया था।
- समुद्रगुप्त के बाद रामगुप्त राजगद्दी पर बैैठा था।
- रामगुप्त की हत्या चन्द्रगुप्त द्वतीय ने की थी।
- चन्द्रगुप्त द्वतीय 380 ई० में राजगद्दी पर बैठा था।
- चन्द्रगुुप्त द्वतीय ने विक्रमादित्य की उपाधि भी धारण की थी।
- चन्द्रगुुप्त द्वतीय को शकों पर विजय पाने के लिए शकारि भी कहा जाता था।
- शकों कोे पराजित करने के उपलक्ष्य में चन्द्रगुप्त द्वतीय ने चॉदी के विशेष सिक्के जारी किये थे।
- चन्द्रगुप्त द्वतीय ने वाकाटक राज्य को अपने राज्य में मिलाकर उज्जैन को अपनी राजधानी बनाया था।
- चन्द्रगुप्त द्वतीय के दरबार के नवरत्न कालिदास, आर्यभट्ट, वराहमिहिर, ब्रह्मगुप्त, धन्वंतरि, तथा। अमरसिंह आदि थे।
- चीनी यात्री फाह्यान चन्द्रगुप्त के शासन काल में भारत आया था।
- चन्द्रगुप्त द्वतीय ने 380 ई० से 413 ई० तक शासन किया था।
- चन्द्रगुप्त के बाद कुमार गुप्त राजगद्दी पर बैठा था।
- चन्द्रगुप्त द्वतीय के शासन काल में सस्कृत के सबसे महान कवि कालिदास थे।
- चन्द्रगुप्त द्वतीय के दरवार में रहने वालेे आयुर्वेदाचार्य धन्वंतरि थे।
- नालन्दा विश्वविद्यालय के संस्थापक कुुमारगुप्त था।
- कुमारगुप्त के बाद स्कन्दगुप्त राजगद्दी पर बैठा था।
- स्कन्दगुप्त ने विक्रमादित्य की उपाधि धारण की थी।
- स्कन्द गुप्त के काल मे ही हूणों का भारत पर हुआ था।
- गुप्त वंश का अंंतिम महान सम्राट स्कन्दगुप्त था।
- गुप्त काल का अंतिम शासक भानुु गुप्त था।
- गुप्त काल में राजपद वंशानुगत सिद्धांत पर आधारित था।
- गुप्त सम्राट न्यान, सेना एवं दीवानी विभाग का प्रधान होता था।
- गुप्त काल मेंं सबसे बडी प्रादेशिक इकाई देश थी। जिसके शासक को गोजा कहा जाता था।
- गुप्त काल में पुलिस विभाग के साधारण कर्मचारियों को चाट एवं भाट कहा जाता था।
- गुप्त काल में उज्जैन नगर सर्वाधिक महत्वपूर्ण व्यापारिक स्थल था।
- गुप्तकाल में स्वर्ण मुद्राओं की अभिलेखों में दीनार कहा जाता है।
- शिव के अर्धनारीश्वर रूप की कल्पना एवं शिव तथा। पर्वती की एक साथ मूर्तियों की निर्माण गुप्तकाल में हुआ था।
- त्रिमूर्ति पूजा के अर्न्तगत ब्रह्मा, विष्णु और महेश की पूजा गुप्त काल में अारम्भ हुई थी।
- गुप्त काल मेंं मंदिर निर्माण कला का जन्म हुुआ था।
- भगवान शिव के एकमुखी एवं चतुर्मखी शिवलिंग का निर्माण गुप्तकाल में हुआ था।
- अजन्ता की गुफाओं में चित्रकारी गुप्तकाल की देन है।
- अजन्ता में निर्मित कुुल 29 गुफाआेेंं में से वर्तमान मेंं केवल 6 गुफायें ही शेष है।
- अजन्ता में निर्मित गुफा संख्या 16 और 17 गुप्तकाल से संबन्धित है।
- गुप्तकाल में वेश्यावृति करने वाली महिलाओं को गणिका कहा जाता था।
- विष्णु का वाहन गरूण गुुप्त काल का राजचिन्ह था।
- गुप्तकाल में चांदी के सिक्कों को रूप्यका कहा जाता था।
- गुप्त काल में अठ्ठाहर प्रकार के कर थे।
- गुप्त काल को भारतीय इतिहास का स्वर्ण काल कहा जाता है।
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गुप्त राजवंश प्रश्नोत्तर (FAQs):
गुप्त राजवंश भारत का एक हिंदू साम्राज्य था। जिसने लगभग पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर शासन किया। इस काल को इतिहासकार भारत का स्वर्ण युग मानते हैं।
गुप्त शासकों की राजभाषा संस्कृत थी। संस्कृत एक उत्तर भारतीय भाषा है जो गुप्त साम्राज्य में प्रचलित थी। गुप्त साम्राज्य में शिक्षा, संस्कृति, धर्म और साहित्य के क्षेत्र में संस्कृत ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
गुप्त वंश का वह राजा स्कंदगुप्त विक्रमादित्य था जिसने हूणों को भारत पर आक्रमण करने से रोका था। हूणों को परास्त करने और भारत को पुनः चक्रवर्ती साम्राज्य बनाने में उनका महत्वपूर्ण योगदान है।
चन्द्रगुप्त मौर्य के बाद उसका पुत्र बिन्दुसार मौर्य राजगद्दी पर बैठा। वह चंद्रगुप्त मौर्य के सबसे बड़े पुत्र थे और उन्होंने अपने पिता की राजधानी पाटलिपुत्र (वर्तमान दिल्ली) में एक जागीरदार के रूप में बरकरार रखी थी।
गुप्त काल के चाँदी के सिक्कों को "रूपक" कहा जाता था। इन सिक्कों पर चंद्रमा की छवि अंकित थी, जिसके कारण इन्हें "रूपक" भी कहा जाता था। ये सिक्के गुप्त साम्राज्य के दौरान प्रचलित मुद्रा थे और चंद्र विज्ञान के प्रतीक माने जाते थे।