मगध साम्राज्य का इतिहास:
छठी शताब्दी ई॰ पू॰ के मध्य सोलह बड़े राज्यों के महाजनपदों का अस्तित्व समाप्त हो चुका था और जब मगध के शासक उत्तरी भारत में सम्पूर्ण साम्राज्य स्थापित करने के लिए लगातार प्रयत्न कर रहे थे। उस समय यहाँ पर 4 प्रबल राजतंत्रों का शासन था – मगध, कौशल, अवन्ती और वत्स। बीते समय में मगध ने इन तीनों राजतंत्रों पर अधिकार करके एक विशाल एवं मजबूत साम्राज्य की स्थापना की। वैदिक साहित्य में मगध को अपावन देश कहा गया है।
इस साम्राज्य की स्थापना बृहद्रथ ने की थी जो जरासंध का पिता व वसु चैध- उपरिचर का पुत्र था। बृहद्रथ ने ही बृहद्रथ वंश की नीव डाली थी। इस वंश मे ब्रह्द्रथ का पुत्र जरासंध एक पराक्रमी शासक हुआ है महाभारत में उसके शौर्य और शक्ति का विस्तृत रूप से वर्णन मिलता है। बृहद्रथ का वंश छठी शताब्दी ई॰पू॰ मे समाप्त हो गया था, क्योंकि उस शताब्दी में जब गौतम बुद्ध ने अपने उपदेश दिये थे तब मगध पर पुरानों के अनुसार ‘शिशुनाग’ वंश का शासक राजा ‘बिम्बिसार’ राज्य करता था। परंतु बौद्ध साहित्य में उस समय मगध पर ‘हर्यक वंश’ का शासन बताया गया है और बिम्बिसार इस कुल से संबंध रखता था।
मगध साम्राज्य का विस्तार करने वाले प्रमुख शासक व वंश का इतिहास:
हर्यक वंश का इतिहास
- बिम्बिसार – हर्यक वंश का सर्वप्रथम राजा बिम्बिसार था। यह भाटिया नामक एक साधारण सामन्त का पुत्र था और 15 वर्ष की आयु में 544 ई॰पू॰ में इनका राज्याभिषेक हुआ। बिम्बिसार को पुराणों के अनुसार श्रेणिक नाम से भी जाना जाता है बिम्बिसार ने तीन विवहा किए थे, कौशल राजा प्रसेनजित की बहन कौशल देवी से, लिच्छवि राजा चेतक की कन्या चेलना से, और मद्र नरेश की पुत्री क्षेमा से। इसने अंग (मुंगेर और भागलपुर) के राजा ब्रम्ह्दत्त को हराया। बिम्बिसार बौद्ध धर्म का अनुयायी था उसने राजगृह का निर्माण करा कर उसे राजधानी राजधानी बनाया। इस नगर का योजनाकार महागोविन्द था। बिम्बिसार की मृत्यु 492 ई॰ मे उसके पुत्र आजतशत्रु द्वारा हत्या करने हुई थी। बुद्धघोष के अनुसार बिम्बिसार के साम्राज्य में 80 हजार गांव थे तथा और उनका विस्तार 900 मील से अधिक था। बिम्बिसार ने बेलुवन नामक उद्दान बुद्ध तथा संघ के निमित्त प्रदान किए थे।
- अजातशत्रु – अजातशत्रु 492 ई.पू. में मगध की गद्दी पर बैठा था। पितृहन्ता के कारण अजातशत्रु का दूसरा नाम कुणिक पड़ा था। इसने गौतम बुद्ध के चचेरे भाई देवदत्त के कहने पर अपने पिता की हत्या की थी। अजातशत्रु का विवाह कोशल नरेश राजा प्रसेनजित की पुत्री वाजीरा के साथ हुआ। उसने अपने दो योग्य मंत्री सुनील और वस्सकार को लिच्छवि राजाओं में फुट पैदा करने का कार्य भार सौंपा इसके बाद वैशाली के लिच्छवि राजाओं के साथ युद्ध हुआ जिसमें अजातशत्रु की विजय हुई। इसमें अजातशत्रु ने लिच्छवियों के विरुद्ध युद्ध में महाशिलाकंटक तथा रथमूसल नामक दो शस्त्रों का प्रथम बार प्रयोग किया। यह पहले जैन धर्म से प्रभावित था परंतु बाद में बौद्ध धर्म को मानने लगा। इसने राजग्रह में विशाल सपूत का निर्माण कराया था। अजातशत्रु की हत्या उसके पुत्र उदायिन ने 461 ई॰पू॰ में की थी।
- उदायिन – उदायिन जैन धर्म का अनुयायी था उसने गंगा और सोन नदीयों के संगम पर पटलिपुत्र नामक नगर की स्थापना की बौद्ध ग्रंथो में उदायिन को पितृहन्ता कहा जाता है। जैन ग्रन्थों में उदायिन को पितृभक्त बताया गया है। हर्यक वंश का अंतिम शासक नागदशक था।
शिशुनाग वंश का इतिहास
- शिशुनाग – नागदशक की हत्या उसके अमात्य शिशुनाग ने की थी। इसके बाद उसने शिशुनाग वंश की स्थापना 412 ई॰पू॰ में की थी। यह बड़ा ही वीर तथा साहसी सम्राट सिद्ध हुआ। सिहांसन पर बैठते ही इसने अवन्ती राज्य पर आक्रमण कर जीत हासिल की। इसके बाद वत्स राज्य और कौशल राज्य पर भी अपना अधिकार स्थापित कर लिया। शिशुनाग ने अपनी राजधानी वैशाली में बनाई। अठारह वर्ष तक सफलतापूर्वक शासन करने के बाद उसका देहांत हो गया।
- कालाशोक – शिशुनाग के बाद उसका पुत्र कालकोश मगध की गद्दी पर बैठा। उसने अपनी राजधानी पटलिपुत्र में बनाई। कालाशोक के शासनकाल में द्वितय बौद्ध संगीति का आयोजन वैशाली में हुआ। शिशुनाग वंश का अंतिम शासक नन्दीवर्धन था।
नन्द वंश का इतिहास
- महापद्म नन्द – नन्दीवर्धन की मृत्यु के बाद उसके पुत्र महापद्म नन्द ने नन्द वंश की स्थापना की (पुराण एवं जैन साहित्य के अनुसार यह पहला गैर क्षत्रिय राजा था) महापद्म नन्द को एकराट, सर्वक्षत्रान्तक अर्थात क्षत्रियों का नाश करने वाला भी कहा जाता है। परंतु इसने द्वितय परशुराम की उपाधि धरण की थी। इसने कलिंग को जीता तथा विद्रोही कोसल राज्य का दमन किया पुराणों के अनुसार उसने 28 वर्ष तक राज्य किया था।
- धनानन्द – धनानन्द नन्द वंश का अंतिम शासक था। भट्टशाल धनानन्द का सेनापति शकटार और राक्षस क्रमश उसके अमात्य थे। नन्द वंश सर्वाधिक धनी राज्य एवं विशाल सेना के लिए प्रख्यात था। सिकंदर का समकालीन शासक धनानन्द था। नन्द वंश का विनाश चन्द्रगुप्त मौर्य। एवं चाणक्य ने किया था। नन्द वंश पहले के कुछेक गैर क्षत्रिय राजवंशों में से एक था। नन्दों को भारत के पहले साम्राज्य निर्माताओं की संज्ञा मिली है। इसके बाद चन्द्रगुप्त मौर्य ने मौर्य वंश की स्थापन की थी।
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