कण्व वंश का इतिहास एवं महत्वपूर्ण तथ्यों की सूची:
कण्व वंश का इतिहास:
कण्व वंश या 'काण्व वंश' या 'काण्वायन वंश' (लगभग 73 ई. पू. पूर्व से 28 ई. पू.) शुंग वंश के बाद मगध का शासनकर्ता वंश था। कण्व वंश वंश की स्थापना वासुदेव ने की थी। वासुदेव शुंग वंश के अन्तिम शासक देवभूति के मंत्री थे, वासुदेव ने उसकी हत्या करके राजसिंहासन पर अधिकार कर लिया। वासुदेव पाटलिपुत्र के कण्व वंश का प्रवर्तक था। वैदिक धर्म एवं संस्कृति संरक्षण की जो परम्परा शुंगो ने प्रारम्भ की थी। उसे कण्व वंश ने जारी रखा। इस वंश का अन्तिम सम्राट सुशमी कण्य अत्यन्त अयोग्य और दुर्बल था। और मगध क्षेत्र संकुचित होने लगा। कण्व वंश का साम्राज्य बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश तक सीमित हो गया और अनेक प्रान्तों ने अपने को स्वतन्त्र घोषित कर दिया तत्पश्चात उसका पुत्र नारायण और अन्त में सुशमी जिसे सातवाहन वंश के प्रवर्तक सिमुक ने पदच्युत कर दिया था।
कण्व वंश का पहला शासक वासुदेव था जिसके गोत्र के नाम पर गोत्र का नाम पड़ा। उनका उत्तराधिकार उनके पुत्र भूमित्र ने लिया। किंवदंती भूमिमित्र को धारण करने वाले सिक्के पंचाल क्षेत्र से खोजे गए हैं। पौराणिक कथा "कण्वस्या" के साथ तांबे के सिक्के भी विदिशा से मिले हैं, साथ ही वत्स क्षेत्र में कौशाम्बी भी हैं। भूमीमित्र ने चौदह वर्षों तक शासन किया और बाद में उनके पुत्र नारायण ने उनका उत्तराधिकार कर लिया। नारायण ने बारह वर्षों तक शासन किया। उनका उत्तराधिकार उनके पुत्र सुशर्मन ने किया जो कण्व वंश के अंतिम राजा थे।
शिशुनाग वंश के बारे में महत्वपूर्ण तथ्य:
- कण्व वंश जाति से मूलतः ब्राह्मण थे।
- कण्व ऋषि के वंशज माने जाते थे।
- वासुदेव के पश्चात कण्व वंश की सत्ता भीमिदेव को प्राप्त हुई।
- कण्व वंश के बाद सत्ता सतवाहनों के हाथों मे आई।
- कण्व वंश के अन्तिम राजा सुशर्मा थे।
शकों का आक्रमण:
अपने स्वामी देवभूति की हत्या करके वासुदेव ने जिस साम्राज्य को प्राप्त किया था, वह एक विशाल शक्तिशाली साम्राज्य का ध्वंसावशेष ही था। इस समय भारत की पश्चिमोत्तर सीमा को लाँघ कर शक आक्रान्ता बड़े वेग से भारत पर आक्रमण कर रहे थे, जिनके कारण न केवल मगध साम्राज्य के सुदूरवर्ती जनपद ही साम्राज्य से निकल गये थे, बल्कि मगध के समीपवर्ती प्रदेशों में भी अव्यवस्था मच गई थी। वासुदेव और उसके उत्तराधिकारी केवल स्थानीय राजाओं की हैसियत रखते थे। उनका राज्य पाटलिपुत्र और उसके समीप के प्रदेशों तक ही सीमित था।
कण्व वंश के शासक (राजा):
कण्व वंश में कुल चार राजा ही हुए, जिनके नाम निम्नलिखित हैं:-
- वासुदेव
- भूमिमित्र
- नारायण
- सुशर्मा
कण्व वंश का अंत:
पुराणों में एक स्थान पर कण्व राजाओं के लिए 'प्रणव-सामन्त' विशेषण भी दिया गया है, जिससे यह सूचित होता है कि कण्व राजा ने अन्य राजाओं को अपनी अधीनता स्वीकार कराने में भी सफलता प्राप्त की थी। पर यह राजा कौन-सा था, इस विषय में कोई सूचना उपलब्ध नहीं है। इस वंश के अन्तिम राजा सुशर्मा को लगभग 28 ई. पू. में आंध्र वंश के संस्थापक सिमुक ने मार डाला और इसके साथ ही कण्व वंश का अंत हो गया.
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