विद्युत क्या है?
विद्युत आवेशों के मौजूदगी और बहाव से जुड़े भौतिक परिघटनाओं के समुच्चय को विद्युत (Electricity) कहा जाता है।अर्थात् इसे न तो देखा जा सकता है व न ही छुआ जा सकता है केवल इसके प्रभाव के माध्यम से महसुस किया जा सकता है| विद्युत से जानी-मानी घटनाएं जुड़ी है जैसे कि तडित (lightning), स्थैतिक विद्युत (static electricity), विद्युतचुम्बकीय प्रेरण (electromagnetic induction), तथा विद्युत धारा (Electric current)। इसके अतिरिक्त, विद्युत के द्वारा ही वैद्युतचुम्बकीय तरंगो (जैसे रेडियो तरंग) का सृजन एवं प्राप्ति सम्भव होता है?
स्थिर-विद्युत क्या है?
लगभग 600 ईसा पूर्व (BC) में, यूनान के दार्शनिक थेल्स (Thales) ने देखा कि जब अम्बर (Amber) को बिल्ली की खाल से रगड़ा जाता है, तो उसमें कागज के छोटे-छोटे टुकड़े आदि को आकर्षित करने का गुण आ जाता है। यद्यपि इस छोटे से प्रयोग का स्वयं कोई विशेष महत्व नहीं था, परन्तु वास्तव में यही प्रयोग आधुनिक विद्युत् युग का जन्मदाता माना जा सकता है। थेल्स के दो हजार वर्ष बाद तक इस खोज की तरफ किसी का ध्यान आकृष्ट नहीं हुआ। 16वीं शताब्दी में गैलीलियो के समकालीन डॉ० गिलबर्ट ने, जो उन दिनों इंग्लैंड की महारानी एलिजाबेथ के घरेलू चिकित्सक थे, प्रमाणित किया कि अम्बर एवं बिल्ली के खाल की भाँति बहुत-सी अन्य वस्तुएँ-उदाहरणार्थ, काँच और रेशम तथा लाख और फलानेल-जब आपस में रगड़े जाते हैं, तो उनमें भी छोटे-छोटे पदार्थों को आकर्षित करने का गुण आ जाता है। घर्षण से प्राप्त इस प्रकार की विद्युत् को घर्षण-विद्युत् (frictional electricity) कहा जाता है। इसे स्थिर विद्युत् (static electricity) भी कहा जाता है, बशर्ते पदार्थों को रगड़ने से उन पर उत्पन्न आवेश वहीं पर स्थिर रहे जहाँ वे रगड़ से उत्पन्न होते हैं।
विद्युत धारा क्या है?
आवेश के प्रवाह को विद्युत धारा कहते हैं। ठोस चालकों में आवेश का प्रवाह इलेक्ट्रॉनों के एक स्थान से दूसरे स्थान तक स्थानान्तरण के कारण होता है, जबकि द्रवों जैसे- अम्लों, क्षारों व लवणों के जलीय विलयनों तथा गैसों में यह प्रवाह आयनों की गति के कारण होता है। साधारणः विद्युत धारा की दिशा धन आवेश के गति की दिशा की ओर तथा ॠण अवेश के गति की विपरीत दिशा में मानी जाती है। ठोस चालकों में विद्युत धारा की दिशा, इलेक्ट्रॉनों के प्रवाह की दिशा के विपरीत मानी जाती है।
विद्युत धारा एवं नियम:
किसी सतह से जाते हुए, जैसे किसी तांबे के चालक के खंड से विद्युत धारा की मात्रा (एम्पीयर में मापी गई) को परिभाषित किया जा सकता है :- विद्युत आवेश की मात्रा जो उस सतह से उतने समय में गुजरी हो। यदि किसी चालक के किसी अनुप्रस्थ काट से Q कूलम्ब का आवेश t समय में निकला; तो औसत धारा मापन का समय t को शून्य (rending to zero) बनाकर, हमें तत्क्षण धारा i(t) मिलती है :
- I = Q / t (यदि धारा समय के साथ अपरिवर्ती हो)
एम्पीयर, जो की विद्युत धारा की SI इकाई है। परिपथों की विद्युत धारा मापने के लिए जिस यंत्र का उपयोग करते हैं उसे एमीटर कहते हैं। एम्पीयर परिभाषा: किसी विद्युत परिपथ में 1 कूलॉम आवेश 1 सेकण्ड में प्रवाहित होता है तो उस परिपथ में विद्युत धारा का मान 1 एम्पीयर है।
- उदाहरण: किसी तार में 10 सेकण्ड में 50 कूलॉम आवेश प्रवाहित होता है तो उस तार में प्रवाहित विद्युत धारा का मान 50 कूलॉम / 10 सेकण्ड = 5 एम्पीयर
विद्युत आवेश क्या है?
इसकी खोज 600 ई . पूर्व हुई थी इसका श्रेय ग्रीस देश के निवासी थेल्स को जाता है 'इलेक्ट्रिसिटी' शब्द भी ग्रीस भाषा के शब्द इलेक्ट्रान से लिया गया है जिसका अर्थ 'ऐम्बर' है। विद्युत आवेश कुछ उपपरमाणवीय कणों में एक मूल गुण है जो विद्युतचुम्बकत्व का महत्व है। आवेशित पदार्थ को विद्युत क्षेत्र का असर पड़ता है और वह ख़ुद एक विद्युत क्षेत्र का स्रोत हो सकता है। आवेश पदार्थ का एक गुण है! पदार्थो को आपस में रगड़ दिया जाये तो उनमें परस्पर इलेक्ट्रोनों के आदान प्रदान के फलस्वरूप आकर्षण का गुण आ जाता है।
विद्युत धारा के प्रभाव
प्रवहमान विद्युत् धारा के मुख्यतः निम्नलिखित प्रभाव हैं- चुम्बकीय प्रभाव, ऊष्मीय प्रभाव, रासायनिक प्रभाव एवं प्रकाशीय प्रभाव।
चुम्बकीय प्रभाव
जब भी किसी चालक से विद्युत् धारा का प्रवाह होता है, तो चालक के चारों ओर एक चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है। सन् 1812 ई० में कोपेनहेगन निवासी ऑर्स्टेड (Oersted) ने एक प्रयोग के द्वारा पता लगाया कि यदि किसी धारावाही तार के समीप चुम्बकीय सूई रखी जाए, तो यह विचलित हो जाती है। चूंकि चुम्बकीय सूई केवल चुम्बकीय क्षेत्र में ही विचलित होती है, अतः स्पष्ट है कि विद्युत्-धारा चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न करती है। इसे ही विद्युत् का चुम्बकीय प्रभाव कहते हैं। चुम्बकत्व की दिशा संबंधी नियम: चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा मैक्सवेल के कॉर्क-स्क्रू नियम, पलेमिंग के दाहिने हाथ के नियम आदि से दी जाती है।
मैक्सवेल का कॉक-स्क्रू नियम
यदि एक काग पेंच की हाथ में ले कर इस तरह से घुमाया जाए कि वह धारा की दिशा में आगे की ओर बढ़े, तो अँगूठे की गति की दिशा चुम्बकीय बल रेखाओं की धनात्मक दिशा बताती है।
फ्लेमिंग के दाहिने हाथ का नियम
जिस तार से होकर धारा बहती है उस तार के ऊपर यदि दाहिने हाथ को रखकर अँगूठे तथा पहली दो ऊँगलियों को इस तरह फैलाया जाय कि वे एक-दूसरे के समकोणिक दिशा में हों और यदि तर्जनी (fore finger) धारा की दिशा तथा बीच वाली ऊँगली सूई की विक्षेपित दिशा बतावें, तो अँगूठे की दिशा चुम्बकीय बल की दिशा बताती है।
लॉरेंज बल
जब किसी चुम्बकीय क्षेत्र में कोई आवेशित कण गति करता है, तो उस पर एक बल आरोपित होता हैं, जिसे लॉरेन्ज बल कहते हैं। यह बल कण के आवेश, उसकी चाल तथा चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता के अनुक्रमानुपाती होता है। भौतिकी (विशेषतः विद्युत चुम्बकीकी) में लॉरेंज बल बिन्दु-आवेश पर वैद्युत-चुम्बकीय क्षेत्र में लगने वाले विद्युतीय और चुम्बकीय बलों का मिश्रित रूप है। q आवेश का v वेग से गतिशिल कण विद्युत क्षेत्र और चुंबकीय क्षेत्र B में एक शक्ति का अनुभव करता है- [जहाँ q = कण का आवेश, v = कण की चाल, B = चुम्बकीय क्षेत्र, θ = कण के वेग v एवं चुम्बकीय क्षेत्र B के मध्य का कोण] बल F की दिशा फलेमिंग के बाये हाथ के नियम (Fleming’s Left Hand Rule) से भी ज्ञात की जा सकती है। यदि एक आवेश q, वेग v किसी बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र B में प्रवेश करता है तो उस पर गति की दिशा तथा चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा दोनों के लम्बवत एक बल लगता है लॉरेंज बल कहते हैं । इसे वेक्टर के रूप में-
- F= qv × B
विद्युत-चुम्बक
यदि किसी बेलनाकार वस्तु के चारों ओर विद्युत्रोधी तार (insulated wire) को लपेट दिया जाए, तो इसे परिनालिका (solenoid) कहते हैं। बेलनाकार वस्तु को उसका क्रोड़ (core) कहते हैं। नर्म लोहे के क्रोड़ वाली परिनालिका विद्युत् चुम्बक कहलाती है। इनका उपयोग डायनमो, ट्रांसफॉर्मर, विद्युत् घंटी, तार-संचार, टेलीफोन, अस्पताल आदि में होता है। नर्म लोहा से अस्थायी चुम्बक बनता है। विद्युत् चुम्बक द्वारा उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता निम्न बातों पर निर्भर करती है-
- परिनालिका के फेरों (turns) की संख्या: यदि फेरों की संख्या अधिक है, तो चुम्बकीय क्षेत्र भी तीव्र होगा।
- क्रोड़ पदार्थ की प्रकृति: यदि क्रोड़ नर्म लोहे का है, तो चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता अधिक होती है।
- धारा का परिमाण: धारा का परिमाण जितना अधिक होगा, क्षेत्र उतना तीव्र होगा।
चुम्बकीय पदार्थों पर लगने वाला बल लौहचुम्बकीय पदार्थों पर लगने वाले बल की गणना करना एक जटिल कार्य है। इसका कारण यह है कि वस्तुओं के आकार आदि भिन्न-भिन्न होते हैं जिसके कारण सभी स्थितियों में चुम्बकीय क्षेत्र की गणना के लिये कोई सरल सूत्र नहीं हैं। इसका अधिक शुद्धता से मान निकालना हो तो फाइनाइट-एलिमेन्ट-विधि का उपयोग करना पड़ता है। किन्तु कुछ विशेष स्थितियों के लिये चुम्बकीय क्षेत्र और बल की गणना के सूत्र दिये जा सकते हैं। उदाहरण के लिये, सामने के चित्र को देखें। यहाँ अधिकांश चुम्बकीय क्षेत्र, एक उच्च पारगम्यता (परमिएबिलिटी) के पदार्थ (जैसे, लोहा) में ही सीमित है। इस स्थिति के लिये अधिकतम बल का मान निम्नलिखित है- जहाँ:
- F, बल (न्यूटन में
- B , चुम्बकीय क्षेत्र (चुम्बकीय फ्लक्स घनत्व) (टेस्ला में)
- A, पोल का क्षेत्रफल (m² में);
- , निर्वात की चुम्बकीय पारगम्यता
चुम्बकीय फ्लक्स Magnetic Flux :चुम्बकीय क्षेत्र में रखी हुई किसी सतह के लम्बवत् गुजरने वाली कुल चुम्बकीय रेखाओं की संख्या को उस सतह का चुम्बकीय फ्लक्स कहते हैं। चुम्बकीय फ्लक्स की SI इकाई वेबर (wb) है।
चुम्बकीय क्षेत्र Magnetic Field: चुम्बकीय क्षेत्र की परिभाषा किसी बिन्दु पर चुम्बकीय फ्लक्स के पद में भी दी जाती है यथा प्रति इकाई क्षेत्रफल से लम्बवत् गुजरने वाली चुम्बकीय फ्लक्स उस बिन्दु का चुम्बकीय क्षेत्र कहलाता है। चुंबकीय क्षेत्र का एस आई मात्रक ,एंपियर/ मीटर , टेस्ला और बेवर है।
धारामापी Galvanometer: धारामापी या गैल्वानोमीटर (galvanometer) एक प्रकार का अमीटर ही है। यह किसी परिपथ में धारा की उपस्थिति का पता करने के लिये प्रयोग किया जाता है। प्रायः इसपर एम्पीयर, वोल्ट या ओम के निशान नहीं लगाये गये रहते हैं। धारामापी के समानान्तर समुचित मान वाला अल्प मान का प्रतिरोध (इसे शंट कहते हैं) लगाकर इसे अमीटर की तरह प्रयोग किया जाता है। धारामापी के श्रेणीक्रम में समुचित मान का बड़ा प्रतिरोध (इसे मल्टिप्लायर) लगाकर इसे वोल्टमापी की भांति प्रयोग किया जाता है। इस यंत्र से 10-6 एम्पियर तक की विद्युत् धारा को मापा जा सकता है।
आमीटर Ammeter: ऐमीटर या 'एम्मापी' (ammeter या AmpereMeter) किसी परिपथ की किसी शाखा में बहने वाली विद्युत धारा को मापने वाला यन्त्र है। बहुत कम मात्रा वाली धाराओं को मापने के लिये प्रयुक्त युक्तियोंको "मिलिअमीटर" (milliameter) या "माइक्रोअमीटर" (microammeter) कहते हैं। अमीटर की सबसे पुरानी डिजाइन डी'अर्सोनल (D'Arsonval) का धारामापी या चलित कुण्डली धारामापी था।
वोल्टमीटर Voltmeter: वोल्टमीटर एक मापन यंत्र है जो किसी परिपथ के किन्हीं दो बिन्दुओं के बीच विभवान्तर को मापने के लिये प्रयोग किया जाता है। 1819 में हैंस ऑरेस्टड ने वोल्टमीटर का आविष्कार किया। उन्होंने चुम्बकीय दिशासूचक की सुई के पास रखे तार में विद्युत धारा का प्रवाह किया तो उन्होंने देखा कि इसकी दिशा में परिवर्तन हो रहा है। ध्यान देने पर ज्ञात हुआ कि तार में जितनी अधिक एंपियर की धारा प्रवाहित की जाती है, सुई की दिशा में उतनी ही तीव्रता से परिवर्तन होता है। इसी कारण से उनका मापन एकदम सही नहीं आ रहा था। 11वीं शताब्दी में आर्सीन डी आर्सोनवल ने ऐसा यंत्र बनाया जो पहले बने यंत्रों की तुलना में बेहतर मापन कर सके। इसके लिए उन्होंने कंपास की सुई को छोटा किया और उसे चारों तरफ से चुंबक से घेर दिया। यह डी आर्सोनवल मूवमेंट के नाम से जाना जाता है और इसका प्रयोग आज के एनालॉग मीटर में होता है। व्यावहारिक तौर पर वोल्टमीटर अमीटर की तरह ही काम करते हैं, जो वोल्टेज को मापने के साथ, विद्युत धारा और प्रतिरोध को भी मापते हैं।
स्थिर-विद्युत्की
भौतिक राशि | मात्रक | संकेत |
विद्युत् आवेश (Electric Charge) | कूलम्ब (Coulomb) | q या C |
विद्युत् विभव (Electric Potential) | वोल्ट (Volt) | V |
विभवान्तर (Potential Difference) | वोल्ट (Volt) | V |
विद्युत् धारिता (Electric Capacity F or, Capacitance) | फैराड (Farad) | F |
विद्युत् धारा
भौतिक राशि | मात्रक | संकेत |
विद्युत् धारा (Electric Current) | एम्पियर (Ampere) | A |
प्रतिरोध (Resistance) | ओम (Ohm) | Ω |
विशिष्ट प्रतिरोध (Specific Resistance or, Resistivity) | ओम मीटर (Ohm Metre) | Ωm |
विद्युत् चालकता (Electric Conductivity) | ओम-1 (ohm-1) या, म्हो (mho) | Ω–1 |
या सीमेन (simen) | S | |
विशिष्ट चालकता (specific conductivity or, Conductance) | ओम-1 मीटर-1 या म्हो मीटर-1 या, सीमेन मीटर-1 | Ω-1m-1 |
विद्युत् शक्ति (Electric Power) | वाट (Watt) | W |
विद्युत सम्बंधित महत्वपूर्ण तथ्य
- प्रतिरोध का SI मात्रक ओम है।
- वाट, विद्युत शक्ति का मात्रक है।
- स्वप्रेरण गुणांक का मात्रक हेनरी है।
- इलेक्ट्रॉन वोल्ट ऊर्जा का मात्रक है।
- आवेश की मात्रा का मात्रक कूलॉम है।
- 4k पर पारे का प्रतिरोध शून्य होता है।
- चांदी विद्युत का सबसे अच्छा चालक है।
- विद्युत-धारिता का मात्रक फैराडे होता है।
- केडमियम सेल, प्रमाणिक सेल कहलाता है।
- स्टोरेज बैटरी में सीसा का इस्तेमाल होता है।
- विद्युत धारा का SI मात्रक ऐम्पियर है।
- विद्युत हीटर का तार नाइक्रोम का होता है।
- विद्युत बल्ब का तंतु टंगस्टन का बना होता है।
- फ्यूज का तार, सीसा तथा टिन का बना होता है।
- किलोवाट घण्टा, विद्युत ऊर्जा का मात्रक है।
- कम शक्ति के बल्ब का प्रतिरोध अधिक होता है।
- डायेनमो, यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदलता है।
- डायनेमोमीटर इंजन द्वारा उत्पन्न शक्ति मापने का यंत्र है।
- एक पूरे चक्र के लिये प्रत्यावर्ती धारा का मान शून्य होता है।
- किसी पदार्थ की सापेक्ष विद्युतशीलता सदैव 1 से अधिक होती है।
- विद्युत बल्ब में नाइट्रोजन अथवा कोई निष्क्रिय गैस भरी जाती है।
- वैस्टन अमीटर से केवल डी.सी. विद्युत धारा ही नापी जाती है।
- विद्युत धारा के चुम्बकीय प्रभाव की खोज ओरस्टेड ने की थी।
- अमीटर हमेशा विद्युत परिपथ के श्रेणी क्रम में लगाया जाता है।
- वोल्टामीटर हमेशा विद्युत परिपथ के समानान्तर क्रम में लगाया जाता है।
- इलेक्ट्रोप्लेटिंग के लिए प्रत्यावर्ती धारा का उपयोग नहीं किया जा सकता।
- अमीटर का प्रतिरोध बहुत कम तथा वोल्टामीटर का प्रतिरोध बहुत अधिक होता है।
- विद्युत धारा को एक स्थान से दूसरे स्थान तक उच्च C वोल्टेज पर ले जाया जाता है।
- विद्युत तार बनाने के लिये तांबा उत्तम माना जाता है क्योंकि इसमें स्वतंत्र इलेक्ट्रॉनों की अधिकता होती है।
- एक उच्चायी ट्रांसफार्मर कम विभव वाली प्रबल प्रत्यावर्ती को उच्च विभव वाली निर्बल प्रत्यावर्ती धारा में बदलता है।
- ट्रांसफार्मर विद्युत-चुम्बकीय-प्रेरण के सिद्धांत पर कार्य करता है। इसे C विद्युत धारा के विभव में परिवर्तन किया जाता है।
- प्रतिरोध एक ऐसा गुणधर्म है, जो किसी चालक में इलेक्ट्रॉनों के प्रवाह का विरोध करता है। यह विद्युत धारा के परिमाण को नियंत्रित करता है।
- प्रतिरोध एक ऐसा गुणधर्म है, जो किसी चालक में इलेक्ट्रॉनों के प्रवाह का विरोध करता है। यह विद्युत धारा के परिमाण को नियंत्रित करता है।
- किसी चालक का प्रतिरोध उसकी लंबाई पर सीधे अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल पर प्रतिलोमतः निर्भर करता है और उस पदार्थ की प्रकृति पर भी निर्भर करता है, जिससे वह बना है।
- ओम का नियम – किसी प्रतिरोधक के सिरों के बीच विभवांतर उसमें प्रवाहित विद्युत धारा के अनुक्रमानुपाती होती है परंतु एक शर्त यह है कि प्रतिरोधक का ताप समान रहना चाहिए।
- समान शक्ति होने पर भी प्रतिदीप्ति ट्यूब, साधारण फिलामेंट बल्ब की अपेक्षा अधिक प्रकाश देता है, क्योंकि ट्यूब में लगा प्रतिदीप्ति पदार्थ पराबैंगनी विकिरण को दृश्य प्रकाश में बदल देता है।
अब संबंधित प्रश्नों का अभ्यास करें और देखें कि आपने क्या सीखा?
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विद्युत की जानकारी प्रश्नोत्तर (FAQs):
फ़ोनों के कारण अभ्रक में अच्छी तापीय चालकता होती है, लेकिन बिजली का अच्छा संवाहक बनने के लिए इसमें पर्याप्त मुक्त इलेक्ट्रॉन नहीं होते हैं। अतः अभ्रक विद्युत का कुचालक है।
कैगा जनरेटिंग स्टेशन एक परमाणु ऊर्जा उत्पादन स्टेशन है जो भारत के कर्नाटक के उत्तर कन्नड़ जिले में काली नदी के पास कैगा में स्थित है। यह संयंत्र मार्च 2000 से परिचालन में है और इसका संचालन भारतीय परमाणु ऊर्जा निगम द्वारा किया जाता है। इसकी चार इकाइयां हैं.
बल्ब का फिलामेंट टंगस्टन का बना होता है। टंगस्टन सफेद गर्म हो सकता है और लंबे समय तक सफेद रोशनी उत्सर्जित कर सकता है।
भारत में पहला जलविद्युत संयंत्र दार्जिलिंग, पश्चिम बंगाल में स्थापित किया गया था। वर्ष 1897 में सिद्रापोंग (दार्जिलिंग) में 130 किलोवाट क्षमता की एक परियोजना स्थापित की गई।
विधुत चुम्बकीय स्पैक्ट्रम के अवरक्त क्षेत्र का लगभग 1 µm से 0.1 mm विस्तार होता है? रेडियो तरंगों की तरंगदैध्य 8×10-7 से 5×10-3 मीटर तक होती है।