पादप रोग विज्ञान के उद्देश्य:
इस विज्ञान के निम्नलिखित प्रमुख उद्देश्य है:- पादप-रोगों के संबंधित जीवित, अजीवित एवं पर्यावरणीय कारणों का अध्ययन करना।
- रोगजनकों द्वारा रोग विकास की अभिक्रिया का अध्ययन करना।
- पौधों एवं रोगजनकों के मध्य में हुई पारस्परिक क्रियाओं का अध्ययन करना।
- रोगों की नियंत्रण विधियों को विकसित करना जिससे पौधों में उनके द्वारा होने वाली हानि न हो या कम किया जा सके।
फसलो को हानि पहुँचाने वाले रोगों की सूची
यहाँ पौधों में होने वाले रोगों के नाम दिये गए हैं:-फसल का नाम | रोगों के नाम |
सरसों | सफेद किटट रोग |
मूँगफली | टिक्का रोग |
आलू | अंगमारी, पछेला अंगमारी |
चना | विल्ट रोग |
आम | चूर्णिल आसिता व गुच्छा शीर्ष रोग |
गेहूँ | भूरा रस्ट एवं किटटु रोग |
धान | खैरा रोग, झुलसा रोग एवं झोंका रोग |
तम्बाकू | मोजैक रोग |
गन्ना | लाल सड़न रोग |
टमाटर | उकठा रोग |
अमरूद | उकठा |
सुपारी | महाली अथवा कोलिरोगा रोग |
अरहर | उकठा |
सब्जियां | जडग्रन्थि व मोजेक |
काफी एवं चाय | किटट |
धान | झोंका तथा भूरा पर्णचित्ती रोग |
पटसन | तना विगलन |
केले | गुच्छ शीर्ष रोग |
कपास | शकाणु झुलसा, म्लानि एवं श्यामव्रण |
अब संबंधित प्रश्नों का अभ्यास करें और देखें कि आपने क्या सीखा?
☞ पादप रोग से संबंधित प्रश्न उत्तर 🔗
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फसलों के रोग प्रश्नोत्तर (FAQs):
नेपेंथेस एक कीटभक्षी पौधा है, यह कीटभक्षी पौधा असम की खासी और गारो पहाड़ियों में पाया जाता है। इसके पत्तों के सिरे पर सुराही जैसी आकृति होती है। यह उसका फंदा है जिसमें वह कीड़ों को फँसाता है।
चावल एक ऐसी उष्णकटिबंधीय खाद्य फसल है जिसके लिए 270 C तापमान और 100 सेमी से अधिक वर्षा की आवश्यकता होती है। चावल की चरम वृद्धि अवस्था के लिए उच्च तापमान और अच्छी मात्रा में वर्षा आवश्यक है। चावल की अधिकांश खेती गर्म जलवायु में होती है और इसे वर्षा और उच्च तापमान के लिए उपयुक्त माना जाता है।
सामान्य फसल उगाने के लिए उपयुक्त उपजाऊ मिट्टी का पीएच मान 6 से 7 होने की संभावना है। पीएच स्केल का उपयोग अम्लता या क्षारीयता को व्यक्त करने के लिए किया जाता है।
मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने के लिए क्रम से विभिन्न फसलें उगाने की प्रक्रिया को फसल चक्र कहा जाता है। फसल चक्र में समय के साथ किसी विशेष क्षेत्र में उगाई जाने वाली फसलों के प्रकार को व्यवस्थित रूप से बदलना शामिल है।
गेहूँ का रतुआ एक पौधे का रोग है जो कवक के कारण होता है। गेहूं का रतुआ रोग फसलों की उपज को कम कर देता है। वे हवा और बीजों के माध्यम से प्रसारित होते हैं। सूक्ष्मजीवों को मारने वाले रसायनों का उपयोग करके उन्हें नियंत्रित किया जा सकता है।